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गुस्से को जीतने न दे : आचार्य महाश्रमण


विराटनगर, नेपाल.23 जुलाई.
परमपूज्य महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने मंगलदायी प्रेरणा पाथेय में फ़रमाया कि- आदमी के भीतर कषाय विद्यमान है तो वह दसवें गुणस्थान तक रहने वाले प्राणी है। दसवें गुणस्थान में नाम मात्र का कषाय होता है। छठे गुणस्थान में कषाय उभरता है। सातवें गुणस्थान से कषाय योगो में प्रकट नहीं होता है। साधू सर्वसावद्य योग का त्याग करने वाला होता है। छठे गुणस्थान में हो तो वह नियमानुसार साधू के कषाय योग में आना नहीं चाहिए पर आ भी सकता है। सातवें गुणस्थान से आगे कभी कषाय योगो में आ नहीं सकता।


गुस्से को हटाए :
गुस्सा भी कषाय है। इसे असफल करने का प्रयास हो। गुस्से व अध्यात्म की चेतना में लड़ाई हो तो आदमी गुस्से को जीतने न दे। गुस्सा आए तो उसे असफल करने का प्रयास करे। गुस्सा व्यक्ति को आये ही नहीं, और अगर मन में आ भी जाये तो वह वाणी और शरीर में न आये।

मन में रहे समता :
व्यक्ति प्रिय-अप्रिय स्थिति को धारण करने का प्रयास करे। व्यक्ति का मन समता में रहे। हमेशा सुख ही सुख मिले यह कठिन है और हमेशा दुःख मिले एसा भी नहीं होता है। कष्ट व्यक्ति को अप्रिय लगते है पर कई बार ये जीवन को विभूषित करने वाले होते है। व्यक्ति हर बात को ग्रहण न करे। अवांछित बात दिमाग में न लाए। दिमाग में धर्म की बात व काम की बात करे। पूज्यवर ने कहा की व्यक्ति उग्रविहारी बन पाये उग्रवादी व उग्रस्वभावी न बने।  आदमी में सहनशक्ति बढे। सबंधो को अच्छा रखने के लिये सहन करना ही होगा। जीवन में समता का भाव रखे।

श्रावको का चौमासा : मनोबल की बात 
पूज्यप्रवर ने चातुर्मासिक सेवा में आने वाले श्रावक- श्राविकाओं के लिए फ़रमाया कि कुछ-कुछ श्रावक तो चातुर्मास लगने से पहले, हमारे प्रवेश से पहले ही आ जाते है। मानो वह हमारे स्वागत के लिए पहले आ जाते है। और कुछ कुछ लोग पुरे चौमासे में इधर ही रहते है। चौमासा तो साधू-साध्वियों का होता है पर कई श्रावक-श्राविकाए भी इधर ही चौमासा कर लेते है। घर-परिवार को छोड़ कर, घर जैसी सुविधा को छोड़कर यहाँ आते है। यह भी मनोबल वाली बात है।

केशलुंचन है मनोबल की बात :-
आज बाल मुनि ध्रुवकुमार के मस्तक का केश लुंचन हुआ। मुनिश्री दिनेशकुमार जी से केशलुंचन करवाने के पश्चात् उन्होंने संरक्षक मुनि योगेशकुमार जी के साथ पूज्यप्रवर के दर्शन किये। पूज्यप्रवर ने बलमुनि पर स्नेह वृष्टि करते हुए दुलार दिया और विनोदपूर्ण लहजे में कहा की लोच हो जाने से सौंदर्य भी निखर जाता है। कोई नजर न लगा दे। लोच करवाना भी सहन करने की बात है। मनोबल न हो तो लोच कराना भी मुश्किल है। हमारे छोटे छोटे संत लोच कराते है, यह बड़ी बात है।

साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभाजी ने कहा कि आज ज्ञान प्राप्ति के अनेक संसाधन उपलब्ध है। विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम, साधन आज उपलब्ध है। लेकिन जो ज्ञान आदमी को आत्मा तक नहीं पहुँचाए, वह अधूरा ज्ञान है और अल्पज्ञान कभी-कभी नुकसान भी कर देता है। इसलिए व्यक्ति अज्ञान का अँधेरा दूर करने का प्रयास करे और अध्यात्म ज्ञान की शरण ग्रहण करें। प्रवचन कार्यक्रम के अंत में समणियों द्वारा "तुम परिमल हो, गंगाजल हो" गीत का संगान किया गया।

सेवार्थियो का आवागमन: 
पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ व सेवा का लाभ लेने हेतु श्रद्धालुओं का आवागमन जारी है। गोचरी के लाभ के साथ प्रतिदिन पूज्यप्रवर के दर्शन करने, प्रवचन सुनने, सामायिक करने, साधू-साध्वियों की सेवा का लाभ भी प्राप्त कर श्रावक-श्राविका हर्षित है।

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