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आचार्य श्री महाश्रमणजी धरान नेपाल में प्रवचन फरमाते हुए |
परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी ने प्रवचन के दौरान फरमाया कि - गुणी एवं चारित्रसम्पन्न व्यक्ति ही मोक्ष का अधिकारे होता है और जो सम्यक ज्ञान सम्पन्न होता है वही चारित्रसम्पन्न हो सकता है. सम्य्क् दर्शन युक्त व्यक्ति सम्यक ज्ञान वाला होता है. साधना के जगत में सम्यक् दर्शन का परम महत्व है. व्यवहार जगत में भी सम्यक् दर्शन का महत्व है. आदमी का दृष्टिकोण सम्यक होना चाहिए, यथार्थ होना चाहिए. आदमी की यथार्थ दृशी ही सम्यक् दर्शन है. यथार्थ बोध ही सम्यक् ज्ञान है.
उन्होंने फरमाया कि दुनिया में सच्चाई का अत्यंत महत्त्व होता है. आचार,विचार, व्यवहार में सच्चाई का समावेश होना चाहिए. सम्यक्त्व को धार्मिकता में मूल तत्व माना गया है. बिना सम्यक्त्व यदि कोई कपटी तौर पर आचार का पालन भी कर ले तो उसका ज्यादा महत्त्व नहीं है.
श्रीमाद्जयाचार्य राजस्थान भाषा के महान कवि थे. उन्होंने आराधना में सम्यक्त्व के बारे में बताया. सम्यक्त्व के बिना उपरी आचार का विशेष महत्त्व नहीं. सम्यक्त्व हो तो आचार तपस्या का महत्व भी बढ़ जाता है.
सच्चाई के प्रति हमारी श्रद्धा रहे. सच्चाई के प्रति श्रद्धा ही सम्यक्त्व का लक्षण है. सम्यक्त्वी यदि सम्यक्त्व की अवस्था में आयुष्य बंध करे तो सीधे वैमानिक देव या मोक्ष में जाएंगा.
पूज्य्प्रवर ने गीत 'हे प्रभो ! तुम्ही हमारे नाथ हो" का संगान किया. साध्वी वृन्द द्वारा "भूल सुधारो जी " गीत का संगान किया गया.
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने फरमाया कि- परिवार में प्रत्येक सदस्य शान्ति से जीना चाहता है. इसलिए आवश्यक है कि परिवार के सदस्यों में परस्पर सहानुभति, सेवा का भाव हो. सदस्यों में सहनशीलता होनी चाहिए. परिवार में यदि एसा होगा तो वहां सुख एवं शान्ति रह सकेगी.
मुख्य नियोजिका साध्वीश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि व्यक्ति ध्यान के द्वारा भीतर प्रवेश कर सकता है. हम भीतर प्रवेश कार भीतरी ज्ञान, आनंद एवं शक्ति का अनुभव कर सकते है.
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