अनासक्त भाव से प्रवृत्ति करे - आचार्य श्री महाश्रमण
व्यक्ति प्रवृत्ति करता है। मन, वचन, कर्म शरीर से भी प्रवृत्ति करता है। व्यक्ति भोजन पानी करता है, चलता है, व्यापार-धंधा करता है। शरीरधारी आदमी प्रवृत्ति से लम्बे काल तक मुक्त नहीं रहता। शरीरधारी के लिए सर्वधा प्रवृत्ति मुक्त हो जाना काफी कठिन होता है। उन्होंने कहा की धरान आये है तो पहाड़ के निकट आ गए है। हिमालय की गुफा में साधना करे तो मौन वहाँ चल जाये पर व्यवहार में पूरा मौन करना कठिन होता है।
व्यक्ति प्रवृत्ति करता है। मन, वचन, कर्म शरीर से भी प्रवृत्ति करता है। व्यक्ति भोजन पानी करता है, चलता है, व्यापार-धंधा करता है। शरीरधारी आदमी प्रवृत्ति से लम्बे काल तक मुक्त नहीं रहता। शरीरधारी के लिए सर्वधा प्रवृत्ति मुक्त हो जाना काफी कठिन होता है। उन्होंने कहा की धरान आये है तो पहाड़ के निकट आ गए है। हिमालय की गुफा में साधना करे तो मौन वहाँ चल जाये पर व्यवहार में पूरा मौन करना कठिन होता है।
व्यक्ति का बिना प्रवृत्ति काम नहीं चलता और प्रवृत्ति करे तो कर्म बंधन होता है। इसलिए व्यक्ति अनासक्त भाव से प्रवृत्ति करे। जहाँ अपेक्षा है वहाँ देखो, अपेक्षानुसार बोलो। व्यक्ति ऐसा मनोरंजन न करे की दुसरो को तकलीफ पड़े। ऊँची साधना करनी है तो विनोद भी छोड़ देना चाहिए।
परमपूज्य महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने धरान के गीत भवन में अपने प्रवास के दौरान आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में अनासक्ति का सन्देश देते हुए कहा की भगवद् गीत की महत्वपूर्ण बात है अनासक्ति। भगवद् गीता में साधना का मार्गदर्शन बड़ा अच्छा है।
राग दो प्रकार का होता है। एक प्रशस्त और दूसरा अप्रशस्त। प्रशस्त राग का मतलब है गुरु के प्रति राग होना। अप्रशस्त राग का मतलब है पदार्थो के प्रति राग होना। अप्रशस्त राग को व्यक्ति द्वारा छोड़ने का प्रयास होना चाहिए।
हम धरान आए है। कल धरान के निकट आ गए थे। साध्वीप्रमुखा जी कल ही पधार गए थे। हमने भी चिंतन किया था की धरान चले जाये, पर फिर वही रहे। धरान में हमारे श्रावक श्राविकाएं रहते है। आज गीता भवन में है। अनासक्ति का उपदेश लोगो के जीवन में उतरे। सभी समाज के लोगो में धर्म की चेतना रहे।
साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभाजी ने कहा की मनुष्य का जीवन एक नोटबुक है। इसका उपयोग - दुरूपयोग व्यक्ति के हाथ में है। व्यक्ति अपने जीवन में लक्ष्य बनाकर सद्कार्य में प्रवृत हो और आचार्यप्रवर के उपदेश को सुनने के साथ उस पर अमल भी करे।
मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने कहा की आचार्यप्रवर व्यक्ति मात्र में विवेक को जागृत करने का सन्देश अपने प्रवचनों के माध्यम से दे रहे है। साध्वीप्रमुखाश्री जी द्वारा रचित गीत की साध्वियों व समणियो द्वारा प्रस्तुति दी गयी।
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परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी का धरान में पावन पदार्पण |
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धरान पदार्पण पर अपने आराध्य की अभिवंदना हेतु समुपस्थित श्रावक समाज |
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आचार्य श्री महाश्रमणजी के धरान पदार्पण के अवसर पर आयोजित रैली 1 |
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आचार्य श्री महाश्रमणजी के धरान पदार्पण के अवसर पर आयोजित रैली 2 |
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