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विवेकपूर्ण सत्पुरुषार्थ करें : आचार्य महाश्रमण


सोनापुर (सुनसरी,. नेपाल) जीवन में पुरुषार्थ का महत्त्व समझाते हुए परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमण ने फ़रमाया कि- दुनिया में नियति में जो निहित है वो होकर ही रहता है. दुनिया में अनेक नियम है. जन्म-मृत्यु नियति है. नियति दुनिया में संचालन का एक बड़ा फैक्टर है. जैन दर्शंन किसी को दुनिया का नियंता नहीं मानता. पर व्यक्ति को भाग्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए. आदमी को विवेकपूर्ण सत्पुरुषार्थ जीवन में करना चाहिए. आदमी को पुरुषार्थ करने के बाद भी सफलता न मिले तो यह व्यक्ति की गलती नहीं है.भाग्य तो जानने की चीज है और पुरुषार्थ करने का होता है.
पूज्यप्रवर ने गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी का स्मरण करते हुए कहा कि- गुरुदेव के शासनकाल के प्रारंभ में माइक व्यवस्था नहीं थी. उन्होंने प्रवचन के लिए जितना पुरुषार्थ किया उतना तो हम कर ही नहीं रहे.
पूज्यप्रवर का आजा का प्रवास अरिहंत मल्टी फाइबर्स परिसर में हुआ. पूज्यप्रवर ने फ़रमाया कि- फैक्ट्रिया भी पदार्थ बनाती है वह अनेको के काम आता है, अनेकों की अपेक्षा पूर्ति करता है. फैक्ट्री में मालिक मजदुर का व मजदुर मालिक का शोषण न करें. सभी में सम्यक् पुरुषार्थ होगा तो स्वच्छता, सुन्दरता एवं समृद्धि होगी. अरिहंत नाम से जुडा यह कार्य स्थान है, यहाँ प्रमाणिकता बनी रहे.
पूज्यवर की प्रेरणा से लोगों ने सद्भावना, नैतिकता  व नशामुक्ति के संकल्प स्वीकार किए.
साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभाजी ने फरमाया कि- आचार्य प्रवर के चरणों के स्पर्श से धरती पावन हो जाती है. व्यक्ति की भावधारा स्वच्छ हो, निर्मल हो एवं आत्मा समृद्ध हो.
मुख्य नियोजिका साध्वीश्री विश्रुतविभाजी ने फरमाया कि- सर्वोच्च अर्हता सम्पन्न को अर्हत कहते है. व्यक्ति के भीतर अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान हो, वह उसे जगाने का प्रयास करें.
साध्वीवृंद द्वारा "किण विध कर समझाऊं मनवा" गीतिका का संगान किया गया. दालखोला ज्ञानशाला द्वारा "ज्ञानशाला के संस्कारों से बने नया संसार गीत का संगान किया गया. संचालन मुनिश्री दिनेशकुमारजी ने किया.
संवाद: राजू हीरावत, प्रस्तुति- अभातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज़.


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