पहले ज्ञान फिर आचार. जैन वांग्मय में कहा गया है कि विद्या व आचार के अनुशीलन से मोक्ष की प्राप्ति हो जा जाती है जो भक्ति से श्रुत की उपासना करते है वे जिनेश्वर देव की आराधना करते है. ज्ञान के साथ आचार भी उन्नत होना चाहिए. यह मंगल प्रेरणादायी वक्तव्य परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समण संस्कृति संकाय, जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा आयोजित प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय जैन विद्या दीक्षांत समारोह में प्रदान किया.
पूज्य्प्रवर ने फरमाया कि- श्रुत को नमस्कार करो क्योंकि ज्ञान से ही आलोक मिलता है. समण संस्कृति संकाय, जैन विश्व भारती द्वारा किए जा रहे कार्य से अनेको विद्यार्थियों को जैन विद्या के सिद्दांत व तत्व विद्या से परिचित होने का मौका मिल रहा है. जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय संस्थान के भी दूरस्थ पाठ्यक्रम चलते है. जैन विश्व भारतीए एवं विश्वविद्यालय दोनों एक दुसरे के पूरक है. अनेकों कार्यकर्ता इस कार्य में योगदान देते है. सबका आध्यात्मिक विकास हो.
कार्यक्रम में जैन विद्या भाग 9 की परीक्षा उतीर्ण कनेवाले विद्यार्थियों को विज्ञ की उपाधि से, भाग 1 से भाग 9 की परीक्षाओं एवं भाग 5 की प्रवेश परीक्षाओं में अखिल भारतीय स्तर पर मेरिट में आने वाले विद्यार्थियों एवं साथ ही जैन विद्या कार्यशाला 2014 में वरीयता स्थान प्राप्तकर्ताओं को पुरुस्कृत किया गया. जैविभा अध्यक्ष धरमचंद लूंकड़, मंत्री अरविन्द गोठी, समण संस्कृति संकाय निदेशक निलेश बैद, विभागाध्यक्ष मालचंद बेंगानी, प्रायोजक शक्तिकुमार कीर्ति बेंगानी, जैविभा ट्रस्टी रमेश बोहरा आदि के हाथों पुरस्कार वितरण किया गया. कार्यक्रम का संचालन सरिता सुराणा ने किया.
संवाद : राजू हीरावत, एडिटिंग: संजय वैदमेहता
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