दिल्ली। ४ अगस्त । आज श्रद्धेय मंत्री मुनिप्रवर ने भगवती सूत्र के बारे में बताया। उन्होंने फ़रमाया कि- आगम में मनुष्य जन्म, शास्त्र श्रवण, उसमें श्रद्धा और उस पर आचरण दुर्लभ बताया गया है। कई बार मनुष्य जीवन तो मिल जाता है किन्तु श्रुति उसमें भी शास्त्र श्रवण नहीं मिल पाता। यह किसी भाग्यशाली को मिलता है । आगम वाणी को श्रवण करना बहुत दुर्लभ है। परिवेश को बदलने और आस पास के वातावरण को प्रभावित करने का क्रम है- आगम स्वाध्याय ।
मंत्री मुनिप्रवर ने जयाचार्य के समय की एक घटना द्वारा आगम स्वाध्याय का महत्व बताया। एक बार जयाचार्य जिस हवेली में विराज रहे थे उसमें पीर रहता था। उन दिनों जयाचार्य का आगम स्वाध्याय चल रहा था। सभी संत भी आगम चितारते थे। आगम स्वाधयाय के कारण यक्ष(पीर) को कठिनाई होने लगी। रात्रि में पीर ने जयाचार्य से कहा आप के आने से मुझे कठिनाई हो रही है, आप यह स्थान छोड़ दे।जयाचार्य ने पिछली रात्रि का प्रतिक्रमण कर संतो से कहा-सामान बांध लो, सुबह यह स्थान खाली करना है। उस हवेली से विहार कर पंचायती न्यौरे में आये। दूसरे दिन पीर न्यौरे ने आया और कहा आप वापस उस हवेली में आ जाये, मुझे अच्छा नहीं लग रहा। जयाचार्य ने कहा कल फिर तुम कहोगे यहाँ से चले जाओ। पीर ने कहा अब आप हमेशा वही रहे। यह है आगम स्वाध्याय का चमत्कार। इसलिए आचार्यों ने कहा-आगम स्वाध्याय से ही वातावरण बदलता है। व्यक्ति आगम स्वाध्याय करे और अर्थ ध्यान में आ जाये तो प्रकिया ही कुछ और हो। यदि केवल प्राकृत पाठ भी किया जाये तो यति कहते थे कि श्रोतेन्द्रिय के द्वारा बांधे कर्म कट जाते है। हर व्यक्ति को चाहिए कि आगम श्रवण को नियमित क्रम बनाये। संत तो बहुश्रुत होते है, श्रावक को भी बहुश्रुत बताया है। वह आगम सुन कर और पूछ (जिज्ञासा)कर बहुश्रुत बन जाता है। आगम श्रवण एक प्रकार से मंत्रो का श्रवण है। इसमें कर्मो की निर्जरा और पुण्य के साथ यदि सामायिक कर लेते है तो विशेष लाभ मिल जाता है। सम्यक्त्व के कारणों में एक कारण है-'शास्त्रों के प्रति श्रद्धा'। चाहे हमें समझ में आये या नहीं आये लेकिन उनके प्रति संशय करने का सवाल नहीं यह हमारी शास्त्रो के प्रति अटूट श्रद्धा है।
हमारे पास सुधर्मा स्वामी द्वारा 'सुधर्म वाचना' उपलब्ध है। काल के कारण कुछ लोप भी हुआ है फिर भी वर्तमान में हमारे पास जो सूत्र है उनमें भगवती सूत्र बहुत बड़ा है। इसमें 36000 प्रश्न किये है। यह प्रश्नात्मक सूत्र है।
आचार्यो ने कहा है कि राजा कुमारपाल ने हेमचंद्राचार्य से भगवती सुनी। उसके एक -एक प्रश्न का विवेचन किया। राजा ने सोचा यूं तो याद रहेगा नहीं, इसलिए राजा ने एक-2 प्रश्न पर 1 मोहर रखते गए। पूरी होने तक 36000 मोहरे हो गई। जब राजा ने आचार्य को देनी चाही तो आचार्य ने कहा मुझे तो कल्पति नहीं, मेरा महाव्रत का खंडन हो जायेगा। उस दान की राशि को कोई पंडित भी लेने तैयार नहीं हुए तो उस राशि का एक श्रुत भण्डार बनाया गया। इन मुद्राओं से भगवती सूत्र को ताड़- पत्र पर लिखने के लिए व्यय किया गया। तभी से श्रुत भण्डार का प्रारंभ हुआ।
संवाद:- ऋषभ बैद दिल्ली
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