उपासक शिविर प्रारंभ
सम्यक्त्व रत्न देना बड़ी आध्यात्मिक सेवा है : आचार्य श्री महाश्रमण
परमपूज्य महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने फरमाया कि- संवर मोक्ष का कारण होता है. संयम की चेतना से संवर को विकसित किया जा सकता है. चौथे गुणस्थान तक सम्यक संवर नहीं होता है. 5 वें गुणस्थान से सम्यक संवर शुरू होता है.सम्यक्त्व रत्न के समान दुसरा कोई रत्न, मित्र , बंधू नहीं है. वह समय बड़ा महत्वपूर्ण है. सम्यक्त्व की प्राप्ति हो जाती है. साधना का महत्वपूर्ण आधार सम्यक्त्व है.
उपासक शिविर का आज प्रारंभ हुआ है. उपासक-उपासिकाएं स्वयं के समयाक्त्व को पुष्ट करें तथा दूसरों को भी सम्यक्त्वी बनाने में अपना योगदान दे. किसी को सम्यक्त्व रत्न देना बड़ी आध्यात्मिक सेवा हो सकती है.
तेयुप विराटनगर द्वारा स्वागत गीत का संगान किया गया. महिला मंडल द्वारा गीतिका संगान द्वारा अभिनंदन किया गया.
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