गुवाहाटी 31 जुलाई। साध्वीश्री अणिमाश्रीजी एवं साध्वीश्री मंगलप्रज्ञाजी के सान्निध्य में तेरापंथ भवन में 'तेरापंथ स्थापना दिवस' का भव्य एवं गरिमामय कार्यक्रम समायोजित हुआ।
साध्वीश्री अणिमाश्रीजी ने अपने प्रेरक उद्बोधन में कहा - आज से लगभग ढाई सौ वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु ने धर्मक्रांति की, वो क्रांति पद प्रतिष्ठा के लिए नहीं थी, मान सम्मान, सुख सुविधाओ एवं हक़ के लिए नहीं थी। वो क्रांति थी सत्य के लिए, आचार शुद्धि के लिए, शुद्ध साध्वाचार के पालन के लिए। सचमुच आचार्य भिक्षु अपने युग के विलक्षण महापुरुष थे। तत्कालीन साधु-समुदायों में पनपने वाली आचार विचार की विसंगति ने उनकी चेतना के द्वार पर दस्तक दी, जिसे वह अनसुना नहीं कर सके। उनकी प्रज्ञा ने उनका विश्लेषण किया। उन्होंने समन्वय के मार्ग पर कदम बढ़ाए, पर चल नहीं पाए क्योकि सिद्धान्तो के साथ समझोता करना उनकी नीति नहीं थी इसलिए दृढ इच्छा शक्ति से उन्होंने क्रांति का आह्वान किया। उसी धर्मक्रांति की निष्पति हमारे जीवन में आये ताकि जीवन सदाबहार बन जाए।
साध्वीश्री मंगलप्रज्ञाजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा - आज गुरु पूर्णिमा का दिन है। सही मायने में तेरापंथ को आज ही गुरु की प्राप्ति हुई थी। तेरापंथ स्थापना का अर्थ है - आचार शुद्धि की स्थापना। तेरापंथ की स्थापना का अर्थ है - मर्यादा का स्वीकरण, अनुशासन का स्वीकरण, श्रद्धा व समर्पण का अंगीकरण। आचार्य भिक्षु की समता विलक्षण थी। किसी भी परिस्थिति में उनकी समता विखंडित नहीं हुई। समता व ममता के संपोषक आचार्य भिक्षु को नमन।

साध्वी सुधाप्रभाजी ने कहा - आचार्य भिक्षु कथनी व करनी के अंतर को पाखंड मानते थे। उनके चिंतन व कर्म में द्वैध नहीं था। आचार्य भिक्षु का यह गुण हमारे भीतर अवतरित हो ताकि साधना का मार्ग पुष्ट बन सके। साध्वी कर्णिकाश्रीजी ने कार्यक्रम का संचालन किया। श्री नेमीचन्दजी सिंघी ने मंगल संगान किया। श्री बाबुलालजी सुराणा, श्री छत्तरसिंहजी बुच्चा ने सुमधुर स्वर लहरी प्रस्तुत की। शाम को तेरापंथ युवक परिषद द्वारा धम्म जागरण का कार्यक्रम रखा गया जिसकी शुरुआत तेरापंथ प्रबोध से की गयी। उसके बाद श्रावको ने सुमधुर गीतिकाए प्रस्तुत की। इसमें काफी संख्या में श्रावक समाज उपस्थित था।
संजय चौरड़िया, राजू देवी महनोत
जैतस, गुवाहाटी
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