शासनश्री साध्वी श्री गुलाबकंवरजी के पावन सानिध्य में पर्वाधिराज पर्युषण का आगाज महिला मंडल द्वारा मंगलाचरण से हुआ। पर्युषण पर्व हम जैनियों का प्रमुख त्यौहार है। केन्द्र द्वारा निर्देशित आठ दिनों की श्रृंखला में प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में मनाया गया। साध्वी श्री जी ने फरमाया उत्तम ऊनोदरी करके व्यक्ति खाने पर संयम रख सकता है। आज के दिन जहां तक हो सके उपवास करना चाहिए। दूसरे दिन स्वाध्याय दिवसको साध्वी श्रीजी ने अधिक से अधिक स्वाध्याय करने पर जोर दिया और यह भी बताया कि स्वाध्याय के माध्यम सेव्यक्ति अपने जीवन को उत्तम बना सकता है। तीसरे दिन साध्वी श्री जी ने सामायिक से होने वाले लाभ के बारे में बताया और चार चरणों में अभिनव सामायिक का प्रयोग करवाया। चौथे दिन वाणी संयम के बारे में साध्वी श्री जी ने कहा कि हमें बोलते समय अपनी वाणी को नियंत्रित रखना चाहिए। कहां क्या बोलना है इस बात का पूर्ण रूप से ध्यान रखना चाहिए।अणुव्रत चेतना दिवस के दिन साध्वी श्री जी ने फरमाया कि श्रावक के लिए अणुव्रत एवं साधु के लिए महाव्रत होता है।यह भगवान महावीर की देन है और आज के युग में यह आचार्य श्री तुलसी की देन है। हमें अपने जीवन में अणुव्रत के छोटे छोटे नियमों को अपनाना चाहिए। जप दिवस के दिन जप का प्रयोग करवाया गया एवं साध्वी श्री जी ने जप की महत्ता के बारे में बताया। ध्यान दिवस के दिन साध्वी श्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि ध्यान करना बहुत मुश्किल होता है सारी साधना को साधने के बाद ध्यान अपने आप सध जाता है।
अंतिम दिन संवत्सरी को साध्वी श्री के उद्बोधन के पश्चात महिला मंडल, युवती मंडल, कन्या मंडल एवं तेयुप द्वारा अत्यंत ही सुन्दर गीतिका प्रस्तुत की गई। सभी ने पूरे आठ दिन खूब धर्माराधना की। उपवास, बेले, तेले ,अठाई अनेक तपस्याएँ हुई। साध्वी श्री भानुकुमारी जी, हेमरेखाजी ,प्रसन्नप्रभाजी एवं ऋतुयशाजी ने सभी को प्रेरणा पथ प्रदान किया।
फोटो साभार:- नरेश तातेड़
ज्योति नाहटा, जोधपुर
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