सुपौल 28.12.15. अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ सुपौल पहुचें। हजारों लोगो का हुजूम पुज्य प्रवर के स्वागत में उमड़ पड़ा भव्य रैली का आयोजन किया गया जिसमें सभी समुदाय के लोगो ने आचार्य श्री का भव्य स्वागत किया।
महातपस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में अर्हत वाड्मय के सूत्र को उद्घृत करते हुए फरमाया कि पाॅच इन्द्रियों का निग्रह करने वाले सन्त पुरूष होते है। हमारे शरीर में पाॅच इन्द्रिय है- कान, आॅख, नाक, जीवा और त्वचा। इनको ज्ञानेन्द्रिया या बुद्येन्द्रिया कहा जाता हे। क्योंकि इनके द्वारा ज्ञान होता है। शब्द रूप आदि विषयों का ज्ञान इन्द्रियों के द्वारा होता है। इन्द्रियों से ज्ञान भी किया जाता है और इन्द्रियों से भोग भी किया जाता है।
इन्द्रियों के बारे में तेरापंथ घर्म सघं के प्रथम सस्थांपक आचार्य भिक्षु ने भी इन्द्रियवादी की चौपाई विवेचन किया है। लगभग 256 वर्ष पूर्व तेरापंथ घर्मसंघ की स्थापना राजस्थान के मेवाड़ केलवा मे हुई थी।
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाते हुए कहा कि साघना के क्षे़त्र में इन्द्रियों का संयम बहुत महत्वपूर्ण है। व्यवहार के क्षेत्र में भी इन्द्रियों का ज्यादा असंयम काम का नही है। हम अपने जीवन में इन्द्रियों का संयम करने का प्रयास करे तो हम धर्म की दृष्टि से भी और व्यवहार की द्वष्टि से भी लाभावित हो सकते है।
- इस अवसर पर आचार्य श्री के सान्निध्य में सभी विद्यार्थी गण एंव ग्रामवासियों ने जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संकल्प लिया।
इस अवसर पर उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमलकुमारजी ने स्वागत में पूज्यप्रवर के समक्ष अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर तेरापंथ कन्या मंडल, तेरापंथ महिला मंडल द्वारा आचार्य श्री के स्वागत में सामूहिक रूप से एक गीतिका प्रस्तुत की गई। और ज्ञानशाला के बच्चो द्वारा भी प्रस्तुति दी गई। तेरापंथ सभा के अध्यक्ष शंभु कुमार बोथरा और स्वजय केन्द्रम के चन्द्रशेखरजी आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। संचालन मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने किया।
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