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सद् गति के उपाय

18.12.2015,  प्रतापगंज
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री के नेतृत्व में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संदेश को लेकर चल रही अहिंसा यात्रा आज सुबह छातापुर से प्रतापगंज पहुंची। रास्ते में हजारों श्रद्धालुओं ने आचार्य श्री के दर्शन किये। स्कुल के बच्चों ने समस्त ग्रामवासियों ने पूज्य प्रवर का भव्य रैली के साथ स्वागत किया। आचार्यश्री के आगमन से पूरे गांव में हर्षोल्लास का माहौल बन गया।

सद् गति के उपाय

महातपस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में अर्हत वाड्मय के सूत्र को उदघृत करते हुए फरमाया कि ससारिक आत्मा एक जीवन के बाद दुसरे जीवन को प्राप्त करती है। यह जन्म मरण की परम्परा चल रही है। जैसे  एक आदमी पुराने वस्त्रो को छोड़कर नये वस्त्रो को घारण कर लेता है। इसी प्रकार यह जीव एक शरीर को छोड़कर दुसरे शरीर को घारण कर लेता है। जैन घर्म में चार गतियाॅ बताई गई है। यानि ससांरिक जीव चार प्रकार की मुख्य योनियो में होते है नरक गति, तिर्यच गति, मनुष्य गति और देव गतिं।
आदमी जीवन जीता है और वो एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। तो वह मरने के बाद कोई नरक गति में, कोई तिर्यच गति में, कोई मनुष्य गति में और कोई देव गति में चले जाते हैं। कोई-कोई मनुष्य ऐसे होते है वो मरने के बाद मोक्ष में चले जाते है। और मोक्ष में जाने के बाद वापस जन्म मरण नही होता है। जन्म मरण की परम्परा से वह आत्मा हमेशा के लिए मुक्ति को प्राप्त कर लेती है।  आत्मा आठो कर्मो को काटकर मोक्षालय, सिद्वालय में विराजमान हो जाती है। तो पुर्नजन्म का सिद्वात है कि ससांरिक जीव एक जन्म के बाद पुर्नजन्म दुसरा जीवन ग्रहण कर लेते है। तो आदमी को यह सोचना चाहिए कि मृत्यु के बाद मेरी दुर्गति ना हो। और आत्मा की सद्रगति पाने के लिए शास्त्रकार ने पाॅच उपाय बताए है तपोगुण प्रघानता, सरलता, क्षमाशीलता, संयम और परिषहों  को जीतना। यह पाॅच बाते जीवन में है तो हमारी अगली गति सद्रगति के रूप में हो सकती है।
आचार्यश्री के सान्निध्य में सभी ग्रामवासियो ने जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संकल्प लिया। तेरापंथ महिला मण्डल ने आचार्यश्री के स्वागत में गीतिका की प्रस्तुति दी। पूज्य प्रवर के स्वागत में जैन श्वेताम्बर सभा के अध्यक्ष विजयराज जी छाजेड़, पूर्व विधायक लखन, प्रखण्ड प्रमुख रमेश प्रसाद यादव, प्रखण्ड के पूर्व प्रमुख भूपनारायण यादव और मोतिलाल जी ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यकम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।

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