अहंकार से बचे : आचार्य महाश्रमण
http://www.jainterapanthnews.in/2015/12/mahashramanji-pravchan-231215.html
Acharya Mahashraman at Nirmali Bihar |
कितनी बार हमारी आत्मा बेर की गुठली के रूप में पैदा हो गई होगी कितनी बार हमारा तिरस्कार हुआ होगा। कितनी बार हम स्थावरकाय के जीव बनें होगे। सौभाग्य से अब मनुष्य जन्म मिला है। तो वर्तमान मनुष्य जीवन में भी बड़ा कहलाने वाला आदमी कभी छोटा बन जाता है। दुसरो पर हुक्म चलाने वाले को कभी दुसरो के हुक्म में रहना पड़ता है। इन बातो पर विचार करके हम यह घारणा बनाये कि हमे धमण्ड नही करना चाहिए। मनुष्य को घन का भी घमण्ड नही करना चाहिए। धन के प्रति ज्यादा आसक्ति व मोह भी नही करना चाहिए। धन का दुरूपयोग भी नही करना चाहिए। ना ही ज्ञान का, रूप का, तपस्या का धमण्ड करना चाहिए। ज्ञान प्राप्त करना है तो घमण्ड को दूर रखना चाहिए। पूज्यों का सम्मान करना चाहिए. आदमी अवस्था से पूज्य होता है या संयम पर्याय से पूज्य होता है। जो विघार्थी विनय पुर्वक ज्ञान लेता है उसका ज्ञान अघिक फलवान हो सकता है। शिक्षक गुरू है उनके प्रति भी विनय का भाव रखना चाहिए।
Gyanshala children welcoming H.H. Acharya Mahashraman at Nirmali Bihar |
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