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राग - द्वेष को जीते

 किशनपुर । 27 दिस. 2015 ।
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री के नेतृत्व में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संदेश को लेकर चल रही अहिंसा यात्रा आज सुबह भपटियाही से किशनपुर में स्थित हाई स्कुल में पहुंची।  
महापतस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में अर्हत वाड्ग्मय के सूत्र को उदघृत करते हुए फरमाया कि आदमी के भीतर राग और द्वेष यह दो वृत्तियाँ कर्मों की बीज है। मोह का ऐसा संसार है और उसके दो यह प्रमुख सैनानी राग और द्वेष है। राग द्वेष से कर्म बन्घन होता है और कर्म जन्म और मृत्यु का कारण बनता है। जन्म और मृत्यु को दुख कहा गया है। साघना का मूल तत्व जन्म मरण रूपी दुख से मुक्त होना है। और दुख से मुक्त होने के लिए राग और द्वेष को समाप्त करना है। राग और द्वेष को समाप्त करने के लिए वैराग्य भाव की आवश्यकता होती है। आदमी में वैराग्य भाव होने से उसकी साघना सफल सुफल बन जाती है। हम साघना को आगे बढाने का प्रयास करे तो हमारे राग द्वेष के भाव कमजोर पड़ सकते है।
इस अवसर पर ग्रामवासियों ने अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्प ग्रहण किए। अचल अघिकारी अजित कुमार लाल ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने किया।










































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