"गणतंत्र दिवस पर कैसे पाएं प्रेक्षाध्यान एवं अणुव्रतों के द्वारा स्वतन्त्रता" : दुर्ग (छतीसगढ़)
Tuesday, January 26, 2016
आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी शिष्या साध्वी श्री गुप्तिप्रभा जी का 26 जनवरी पर दुर्ग छत्तीसगढ़ में आयोजित " गणतंत्रता दिवस पर कैसे पाएं प्रेक्षाध्यान एवं अणुव्रतों के द्वारा स्वतन्त्रता" कार्यक्रम जैन समाज के मध्य पदमनामपुर काॅलोनी मे हुआ। साध्वी श्री जी ने कहा- आज के दिन भारत के संविधान लिखा गया था। आज के दिन को गणतंत्र दिवस के रूप मे मनाया जाता है । इसी समय में क्रांति की मशाल हाथो मे थाम आचार्य श्री तुलसी ने जनता को मानवता का पाठ पढाने की भावना लेकर सरदारशहर मे प्रारम्भ किये गये "अणुव्रत आन्दोलन " का अवदान देने दिल्ली पधारे। प्रभुदयाल जी डाबडीवाल' जैसे श्रावकों के माध्यम से नेताओं से मिलने का कार्य शुरू किया।पंडित जवाहरलाल नेहरू आचार्य तुलसी से बहुत प्रभावित हुए। प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने स्वयं आकर आचार्य तुलसी से अणुव्रत के नियम स्वीकार कर अणुव्रती बने। आचार्य तुलसी ने चरित्र निर्माण पर जोर दिया जिस प्रकार एक लाख मे से एक हट गया तो सारे शुन्य का मूल्य घट गया वैसे ही लाखों लोगो का अन्य निर्माण सब ठप्प है जब तक चरित्र निर्माण ठप्प है। आचार्य तुलसी ने कहा- "मै न हिन्दु ना मुसलमान, सबसे पहले मै इंसान हुँ, फिर एक संत और एक धर्माचार्य हुँ।"आवश्यकता के अनुसार से जीवन हो ख्वाहिशों के अनुसार से नही। तब ही संयममय जीवन जीया जा सकता है। सही गणतंत्र प्राप्त करनी है तो चरित्र को ऊँचा स्थान देना होगा । अपने घर मे आये और आकर स्व की अनुभूति करना ही सही गणतंत्र है अत: बहिर्मुखी से अन्तर्मुखी बने। किसी कवि ने कहा है-
" तन की हानि,मन की हानि, जीवन की बर्बादी
दुर व्यसनो से बंधे हुए होतो यह कैसी आजादी।।"
हर मानव को दुर व्यसनो से स्वतंत्र होना अपेक्षित है। प्रेक्षाध्यान एवं अणुव्रत के नियम स्वीकार करने से जीवन को अच्छे रूप में जीया जा सकता है। साध्वी श्री मौलिकयशा जी ने प्रेक्षाध्यान एवं अणुव्रत पर प्रकाश डालते हुऐ बताया कि प्रेक्षाध्यान कब, क्यों एवं कैसे करना चाहिए तथा प्रयोग भी कराया गया । अणुव्रत के संकल्प स्वीकार कराये गये। साध्वी श्री भावितयशा ने सुमधुर गीत का संगान किया। संवाद साभार : मुदित दुधोडिया
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