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धर्म उत्कृष्ट मंगल : आचार्य श्री महाश्रमण

भट्ठा बाजार, पूर्णियाँ, 21 जून

महातपस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने प्रात:कालीन उद्बोधन में फरमाया कि श्वेताम्बर तेरापंथ सम्पद्राय में बत्तीस आगमों की मान्यता है। इनमें 11 अंग, 12 उपांग, 4 मूल, 4 छेद, 1 आवश्यक का समावेश है। इन बत्तीस आगमों में चार मूल नाम से जो आगम है। उनमें एक है दसवेआलियं। यह बहुत बड़ा नही है, छोटा ही है। हमारे कितने साधु-साध्वियों ने दसवे आलियंम को कंठस्थ किया है। इस में साधु आचार की बातें बताई गयी है। पांचवें अध्ययन में साधु को गोचरी कैसे करना है?, चौथे अध्ययन में साधू को छः काय जीवों की अहिंसा का कैसे पालन करना, सातवें अध्ययन में साधु को बोलना कैसे है? दसवें अध्ययन में भिक्षु  कौन होता है?, भिक्षु में क्या-क्या योग्यता होनी चाहिए? आदि का वर्णन है. इसकी दो चुलिकाएँ है। एक चुलिका में यह बताया गया है कभी साधु का मन अस्थिर हो जाए और घर जाने की भावना मन में आ जाए तो घर जाने से पहले अठारह बातों को पढ़ लो। यह अठारह बातें पहली चुलिका में बताई गई है। जैन शासन में भगवान महावीर के कुछ वर्षों बाद एक आचार्य हुए है-शय्यंभव जिन्होंने दसवेआलियं का निर्युहण किया।

आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया--दसवेआलियं का पहला श्लोक है-  "धम्मो मंगलमुक्किट्ठं अंहिसा संजमो तवो  देवावितं नमंसती जस्स धम्मे सयामणो"। धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अंहिसा धर्म है,  संयम धर्म है, तप धर्म है। जिस आदमी का मन धर्म में सदा रमा रहता है उसको देवता भी नमस्कार करते है।  धर्म के तीन प्रकार है- अहिंसा, सयंम, तप. इन तीन के अलावा और कोई आघ्यात्मिक धर्म हमें प्रतीत नही होता है। आघ्यात्मिक धर्म इन तीनों में समावेंश हो गया है। जहाँ अहिसा, सयंम, तप, है वहाँ मगल होगा। अहिंसा, सयम तप की साधना साधु को तो करनी ही चाहिए और गृहस्थों को भी जितना हो सके उतनी साधना करने का प्रयास करना चाहिए। हम प्राणियों के प्रति दया भावना रखें, अहिंसा की भावना रखे। हमें इन्दियों का सयंम रखना चाहिए और साथ में तपस्या करने का प्रयास करना चाहिए।

पूज्य प्रवर के स्वागत में तेरापथ महिला मण्डल की ओर से गीतिका की प्रस्तुति दी गयी। तेरापंथ समा के अध्यक्ष विजयसिंह नाहर, तेरापंथ समा संरक्षक हुणतमल नाहर, तेरापंथ सभा के उपाध्यक्ष नवरतनमल सेठिया, स्वरूप जी सचेती, डॉ. बिनोद धारेवा और तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्षा कंचन देवी नाहर ने पूज्य प्रवर के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत किए। संचालन मुनि श्री  दिनेशकुमारजी ने किया। 

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