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माया का परित्याग करें : आचार्य श्री महाश्रमण

मुरलीगंज, 3 जन. तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में कहा कि आदमी के भीतर राग द्वेष के भाव होते है। अवीतराग मनुष्य में राग द्वेष के भाव होते है। राग द्वेष का एक अंग है माया। आदमी दुसरो को ठगने में माया का उपयोग करता है। इस बात पर भी घ्यान जाना चाहिए कि दुसरो को ठगने के चक्कर में अपना नुकसान, अपनी आत्मा का नुकसान हो रहा है। माया करने वाला आदमी पता नही किस किस के साथ माया कर सकता है। वह अपने मित्रों के साथ भी माया कर सकता है। आगम में कहा गया है कि माया मित्रता का या मित्रों का नाश करने वाली होती है।
माया एक भय का स्थान है। एक बार आदमी ने झुठ कपट कर लिया अब उसको ढंकने के लिए फिर झुठ बोलना पड़ जाता है। तो उसके मन में भय पैदा होता है, इसलिए माया भयस्थान भी बन जाता है। नैतिकता के लिए माया शत्रु है। । सच्चाई की दुश्मन है माया।  यथार्थ की साधना और सच्चाई की साधना करनी है तो माया को छोड़ना अनिवार्य है। माया छोड़कर निश्चलता पूर्ण व्यवहार करना एक पवित्रता की साधना होती है। माया का परित्याग पवित्र जीवन के लिए एक आयाम है। और उसकी साधना हमें करनी चाहिए।
आचार्यश्री के सान्निध्य में सभी ग्रामवासियो ने जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संकल्प लिया। तेरापंथ महिला मण्डल और तेरापंथ कन्या मण्डल ने आचार्यश्री के स्वागत में गीतिका की प्रस्तुति दी। पूज्य प्रवर के स्वागत में नगरपंचायत के चैयरमेन सरजना सिद्वी, चेम्बरआॅफ काॅमर्स के अध्यक्ष ब्रह्मानंद जेसवाल, विनोद बाफना, अशोक शर्मा सरिता श्यामसुखा ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यकम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।

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