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दया सुखों की बेल : आचार्य श्री महाश्रमण

रानीपतरा, 9 जन.।
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री के नेतृत्व में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संदेश को लेकर चल रही अहिंसा यात्रा आज सुबह मधुबनी बाजार पूर्णिया से रानीपतरा मे स्थित राजकीय बुनियादी विद्यालय पहुंची।
आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में श्रद्वालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि-
दया एक ऐसा तत्व है जो धर्म की साधना का महत्वपूर्ण अंग है। दया धर्म का मूल हैं। अगर मन में दया है तो आदमी कितने पापों से बच जाता हैं। दया का ही एक नाम है- अनुकंपा। यानि भीतर मे कपंन हो जाए कि मेरे से कोई जीव मर न जाए। हमारे भीतर में दया का भाव जागना चाहिए। दया कल्याण को पैदा करने वाली है और दु:ख-पाप रूपी शत्रुओं को, विघ्नों को नष्ट करने वाली है। दया सुखों की बेल है। मन में दया है तो मन में बड़ी शान्ति मिल सकती है और गुणों का विकास दया से हो सकता है। अनन्त जीव दया की साधना करके मोक्ष मे चले गये है। गृहस्थ भी अपने जीवन में दया की भावना को पुष्ट रखने का प्रयास करें।चुर्तदशी पर हाजरी का वाचन किया गया।
पूज्य प्रवर के स्वागत में नरेन्द्र कुमार, विश्वनाथ मेहता, राजीव सिंह आदि ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यकम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।


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