Top Ads

वर्धमान महोत्सव का प्रथम दिवस गुलाबबाग

गुलाबबाग़, 29 जन. अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने वर्धमान महोत्सव का प्रथम दिवस पर श्रद्धालुओं को अपने जीवन में वर्धमान होने की प्रेरणा प्रदान की। वर्धमान भगवान महावीर का नाम है। उनके इस नाम का शाब्दिक अर्थ होता है बढ़ता हुआ। इस वर्धमान शब्द की व्याख्या के साथ आरंभ हुआ आज का वर्धमान महोत्सव। आचार्य श्री ने फरमाते हुए कहा कि- वर्धमान होने से हम आत्मा के आसपास रहने लगते हैं, जिससे जीवन के कषायों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। हमारा रूझान आत्मा के प्रति होना चाहिए। शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा नहीं। इसलिए अपनी आत्मा को पुष्ट बनाएं उसे मोक्ष के पथ पर अग्रसारित करने का निरंतर प्रयास करें। इससे आदमी का कल्याण हो सकता है। शरीर को साफ रखना अलग बात है, किन्तु जब तक आत्मा की सफाई नहीं होगी आदमी के जीवन में विशेष बदलाव नहीं आ सकता। इसलिए प्रत्येक मानव को अपने जीवन में वर्धमानता लाने का प्रयास करना चाहिए।  उन्होंने साधु-साध्वियों के बढ़ते सिंघाड़े को वर्धमान महोत्सव का मुख्य कारण बताया। साथ सभी साधु-साध्वियों को प्रकृति प्रदत्त सभी वस्तुओं को संयम के साथ उपभोग करने का मंत्र देते हुए कहा कि व्यवस्थाओं का सम्मान रखते हुए पदार्थों के प्रयोग में संयम बरतनी चाहिए। किसी भी पदार्थ का आवश्यकता से अधिक दोहन करने के बजाय उसके अल्प मात्रा से ही अपने कार्य को पूर्ण कर लेने का प्रबन्धन करना चाहिए। आज आचार्यश्री का स्वागत करते हुए ज्ञानशाला के बच्चों ने जीव की चार गतियों का नाटक रूपातंरण प्रस्तुत कर उपस्थित सभी श्रद्धालुओं को सच्चाई, ईमानदारी, अहिंसा व नैतिकता का पाठ पढ़ाया। उपस्थित साध्वियों द्वारा आचार्यश्री के स्वागत में गीत प्रस्तुत किया गया। वहीं आचार्यश्री को दो और पुस्तकें समर्पित की गयी। उन पुस्तकों के बारे में आचार्यश्री ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि दोनों पुस्तके जीवन वृत्त पर आधारित हैं। इन पुस्तकों से हम सभी को प्रेरणा मिल सके तो अच्छी बात होगी। कार्यकम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।   

Post a Comment

1 Comments

Leave your valuable comments about this here :