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नए साल में धर्म की साधना में लगे समय : आचार्य श्री महाश्रमण


मधेपुरा। 1 जन.। परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में फरमाया कि आदमी के सामने जो समय होता है उसका अच्छा उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। समय तो बीत रहा है। समय को पीछे से पकड़ने का नही होता है उसको आगे से पकड़ने का प्रयास होना चाहिए। आदमी समय को अच्छे कार्य में नियोजित करने का प्रयास करना चाहिए। समय को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अंहिसा संयम और तप धर्म है। जिसका मन सदा धर्म में रहता है उसे देवता भी नमस्कार करते है। अंहिसा संयम और तप हमारे जीवन मे रहें। तपस्या की साधना भी करनी चाहिए। शरीर का वाणी का मन का इन्द्रियो का संयम करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में अंहिसा रहे, किसी को दु:ख देने का प्रयास न हो। हो सके तो किसी का कल्याण करे किसी का भला करने का प्रयास करे। हम दुसरो के साथ मेत्री पूर्ण व्यवहार करने का प्रयास करे। हमारे जीवन में अंहिसा संयम और तप रहे। हम अच्छा जीवन जीने का प्रयास करे। 2016 के वर्ष मे जितना हमारा समय धर्म की साधना मे बीते वो खास महत्वपूर्ण बात है।
इस अवसर पर ग्रामवासियों ने अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्प ग्रहण किए। इस अवसर पर शासन गोरव श्री मुनि धनंजयकुमारजी ने अपने विचार व्यक्त किए।  कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने किया।
लोकार्पणः-जैन विश्व भारती के अध्यक्ष धर्मचन्द जी लूंकड़ द्वारा नववर्ष पर पुज्य प्रवर को पुस्तक और कलेण्डर का भेटः-
1.हर दिन नया विचार- आचार्य श्री महाप्रज्ञ
2.निर्वाण का मार्ग- आचार्य श्री महाश्रमण
3.द पाथ आॅॅफ फ्रीडम फ्रोम सोरो-

आचार्य श्री महाश्रमण द्वारा सिंहेश्वर में पुज्य प्रवर द्वारा नववर्ष पर वृहत मंगल पाठ प्रदान किया गया।

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