Top Ads

कषायों का उपशमन हो : आचार्य माहाश्रमण

भट्ठा बाजार, पूर्णियाँ.  20 जन.   
परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने प्रात:कालीन प्रवचन में फरमाया कि-  आदमी में गुस्सा देखने को मिलता है.. वीतराग पुरूष जो दसवें गुणस्थान के पार, ग्यारहवें से भी पार बारहवें में पहुँच जाते है उनमें तो बिल्कुल भी गुस्सा नही होता है। भीतर में भी बिल्कुल गुस्सा नही होता है। परन्तु साधारणतया जो लोग छठे गुणस्थान तक रहने वाले है उनके तो कभी मन में, कभी वाणी में, कभी शरीर में गुस्सा देखा जा सकता हैं। गुस्से से आदमी खुद भी परेशान हो जाता है और दुसरों कोे भी परेशान कर देता है।

गुस्से से निजात पाने के लिए क्षमाशील बनने एवं शान्त रहने का अभ्यास करना चाहिए, सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा करनी चाहिए., प्रेक्षाधान आदि का प्रयोग करना चाहिए। हमें गुस्से को छोड़ने का या कम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अहंकार भी नही करना चाहिए। आदमी को पैसे का, रूप का घमण्ड नही करना चाहिए। अहंकार को मृदुता से जीता जा सकता है।
आदमी को माया से बचना चाहिए। छल कपट नहीं करना चाहिए। छल कपट को ऋजुता से जीतने का प्रयास करना चाहिए। लोभ, लालच भी नहीं करना चाहिए। एक लोभ के कारण से आादमी कितने प्रकार के पाप कर लेता है। हिंसा, बईमानी यह पाप लोभ के कारण से हो जाते हैं। लोभ को जीतने के लिए संतोष की साधना करनी चाहिए। पूज्य बनने के लिए आदमी को संतोष धारण करना चाहिए। तो उपशम, मृदुता, ऋजुता और संतोष इन चारों के द्वारा क्रमश: गुस्से, अहंकार, माया एवं  लोभ को जीतने का अभ्यास आदमी को करना चाहिए। यह चार कषाय  हमारे कम हो जाते है तो हम आत्म उत्थान की दिशा में आगे बढ़ सकते है। ज्ञानशाला के छोटे-छोटे बच्चो द्वारा पुज्यप्रवर के स्वागत मे रोचक प्रस्तुति दी गयी।



Post a Comment

0 Comments