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समता सुख का आधार : आचार्य श्री महाश्रमणजी

कटिहार, 12 जनवरी। महातपस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में फरमाया कि जैन शासन में समता को महत्व दिया गया है। समता धर्म है और अध्यात्म की साधना का कोई केन्द्रीय तत्व है तो वह है समता। शास्त्र में कहा गया- समता की  साधना कर अपने आप को विशेष बनाएँ। परम शान्ति को पाने का राजमार्ग है समता की साधना करना।
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाते हुए कहा कि- सुर्य का उदय होता है। उदय के समय भी सुर्य लाल होता है और सुर्य अस्त के समय भी लाल होता है। तो जो स्थिति उदय काल में है। वही स्थिति अस्त काल में है। दोनों में समता है। इसी प्रकार जो महान लोग होते हैं 
उनकी अनुकुलता और  प्रतिकुलता दोनों स्थितियों  में 
एकरूपता होती है। साधु समता में रहे।  लाभ-अलाभ, सुख-दु:ख, जीवन-मरण, निन्दा-प्रशसा, मान-अपमान सब स्थितियों में समता रखने का प्रयास करना चाहिए। समता के विशेष साधक होने के कारण संत लोग सुखी होते हैं। सुख का मूलआधार समता की साधना होती है। 
समस्या होने पर ज्यादा दुखी नही बनना चाहिए। तनाव से हमें बचना चाहिए और समस्याओं को हल करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को समता और शान्ति से बात कहने का प्रयास करना चाहिए। हम वाणी का संयम करने का अभयास करें। समता की साधना होगी तो हमारी वाणी भी अच्छी होगी। अगर समता नही है तो वाणी भी विकृत बन सकती है। हमें समता धर्म की साधना करनी चाहिए। 
पुज्य प्रवर के स्वागत में तेरापंथ महिला मण्डल द्वारा गीतिका की प्रस्तुती दी। अध्यक्ष श्री तेजकरण संचेती नगर निगम महापौर श्री विजय सिंह, पूर्व शिक्षा  राजमंत्री रामप्रकाश महतो, विधायक तारकेश्वर प्रसाद, प्रवास व्यवस्था समिति के अभय पटावरी और रेड क्रास सोसायटी के अनिल चामडि़या ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन तेरापंथ सभा के मंत्री मनोज सुराणा ने किया। 

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