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आस्तिक हो या नास्तिक - अणुव्रती जरुर बने

H.H. Acharya Mahashramaji at Katihar 
कटिहार, 14 जन. अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने प्रात:कालीन प्रवचन में फरमाया कि  दो विचारधाराएँ रही है- एक आस्तिक विचार धारा और दुसरी नास्तिक विचार धारा। आस्तिक विचार धारा का कथन है कि आत्मा का स्थायी अस्तित्व है ,पूर्व जन्म और पुर्नजन्म होता है, किये हुए कर्मों का फल मिलता है। आत्मा मोक्ष में भी जा सकती है। यह मान्यता आस्तिक विचार धारा की है। नास्तिक विचार धारा का कथन है कि कोई पुर्नजन्म नही होता है, कोई परलोक नहीं,  कोई पूण्य-पाप का फल नहीं। यह नास्तिक विचार धारा है।
धार्मिक जगत में आस्तिक विचार धारा आधारभुत तत्व है। अगर आत्मा का शाश्वत अस्तिव नहीं  है, पूर्नजन्म नहीं है फिर तो धर्म की आवश्यकता बहुत ही कम रह जाती है। अगर आगे आत्मा का अस्तित्व है इसलिए धर्म की साधना की उपयोगिता है कि कैसे आत्मा मोक्ष में जा सके। परन्तु कोई अधार्मिक कहलाने वाला आदमी जो पुन:जन्म में विश्वास न करने वाला हो तो उसको भी अणुव्रत जैसे वाद को अपनाना चाहिए। नैतिकता, संयम, अहिंसा के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए ताकि उसका जीवन शान्तिमय रह सके।

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