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अपने आप को देखें : आचार्य महाश्रमण

गुलाबबाग, 26 जन. गणतंत्र दिवस के अवसर पर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रात:कालीन प्रवचन के दौरान कहा कि देश के हर नागरिक का यह पहला कर्तव्य बनता है कि वह संविधान का सम्मान करे। उसके प्रति अपनी निष्ठा रखे। किसी को भी संविधान का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।
महातपस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में फरमाया कि ‘अपने आप को देखने की साधना’सबसे प्रमुख है। 'स्वयं को देखना’ अध्यात्म की साधना में सबसे उच्च कोटि की साधना बताई।  हमारी आंखे हमेशा सामने वाले को ही देख पाती हैं अपने चेहरे को नहीं। यदि आदमी को अपना चेहरा देखना हो तो उसे दर्पण या किसी ऐसी वस्तु का आश्रय लेना पड़ता है जो उसके उसके चेहरे को प्रदर्शित कर सके। आध्यात्मिक दृष्टि से अपने आपको देखने का आशय है अपने बारे में जानना। जैसे मैं कैसा हूं, मेरे अंदर क्या कमी है, क्या दुर्गुण है, कौन सा दोष है, कौन सी अव्यवहारिकता है। ये सभी अपने आपको देखने के बिन्दु हैं। आत्मा को देखना ऊंची भूमिका होती है इसलिए आदमी को अपनी कमियां देखनी चाहिए और उसे दूर करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। अपने आपको जानने के लिए आदमी को अंतर्मुखी बनना पड़ेगा। इसके लिए आदमी को प्रेक्षाध्यान करना चाहिए। स्वाध्याय करना चाहिए। आचार्य तुलसी प्रेक्षाध्यान को विशेष महत्व देते थे। एक कहानी के माध्यम से उन्होंने श्रद्धालुओं को यह समझाया कि गुरू ही एक ऐसा दर्पण है जो अपने शिष्यों की कमियों को दिखाता है और उसे दूर करने में सहायक होता है। गुरू के द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर ही आदमी अपनी कमियों को दूर कर सुखमय जीवन के पथ पर अग्रसर हो सकता है। गुरू की महत्ता को समझाते हुए कहा कि गुरू स्वयं त्यागी होता है और दूसरों का कल्याण करने वाला होता है।
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाते हुए कहा कि संसाारिक जीवन में दूसरों को देखना गलत नहीं उचित हो सकता है। दूसरों के बारे में जानना भी आसान नहीं है। क्योंकि करीबी मित्र ही अपने मित्र को बेहतर ढंग से जान सकता है दूसरा नहीं। दूसरों को जानने का आशय सिर्फ इतना ही होना चाहिए कि आदमी को यह पता चल सके कि उसके साथ कैसे रहा जा सकता है। वह यदि गुणवान हो तो उससे गुण कैसे प्राप्त किया जा सकता है और दुर्गुणों से भरा हुआ है तो उससे कैसे बचा जा सकता है। अपने आपको जानना मतलब अपनी आत्मा को जान लेना है। जब आदमी अपनी आत्मा को जान लेता है तो उसकी आत्मा सुन्दर व पवित्र हो जाती है तथा मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होने लगती है।
आचार्यश्री के स्वागत में समणी मधरुप्रज्ञा जी ने अपने विचार प्रस्तुत किए। गुलाबबाग से ही दीक्षा प्राप्त कर आचार्यश्री के साथ अहिंसा यात्रा पर निकले मुनि नमन कुमार ने भी आचार्यश्री का स्वागत कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की। ‘ज्ञानशाला के हम सब बच्चे’ इस गीत के बोल पर ज्ञानशाला के छात्र-छात्राओं ने  प्रस्तुति कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसी क्रम में कन्या मंडल ने भी ‘मन मंदिर के देव पधारे’ बोल पर भावपूर्ण  प्रस्तुति दी। कार्यकम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।


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