14 फरवरी 2016, छतीसगढ़, ABTYP JTN से प्रदीप पगारिया की रिपोर्ट, साध्वीश्री गुप्तिप्रभाजी के सान्निध्य में दुर्ग - भिलाई में 152वां मर्यादा महोत्सव मनाया गया। साध्वीश्री गुप्तिप्रभाजी ने कहा संघबद्ध साधना के कुछ सूत्र जिन्हें अपनाना अपेक्षित है - अहंकार विलय, आत्म निरिक्षण, अपूर्णता का बोध, पारस्परिक सहयोग, संविभाग। आपने उदबोधन में आगे कहा -
"मर्यादा और व्यवस्था आचार्य भिक्षु के हाथों का आर्ट है, मर्यादा में चलने वाला हर साधक होता स्मार्ट है,
एक शब्द में कहूँ तो निचोड़ यही है,मर्यादा अनुशासन तेरापंथ का हार्ट है।"
साध्वीश्री कुसुमलताजी ने गीत व भाषण द्वारा अपने विचार रखें। साध्वीश्री मौलिकयशाजी व साध्वीश्री भावितयशाजी ने गीतिका द्वारा भावपूर्ण प्रस्तुति दी। डॉ. मदनलाल जैन, जीतमल जैन, निर्मल दुधोडिया, निधि बरमेचा, दानमल पोरवाल आदि ने भाषण द्वारा अपने भावों की प्रस्तुति दी। उषा बागमार, शोभा पोरवाल, शांति बरडिया, महिला मंडल राजनांदगांव, महिला मंडल दुर्ग भिलाई, व सुनीता बेंगाणी ने गीतिका द्वारा सुंदर अभिव्यक्ति दी।
महिला मंडल दुर्ग भिलाई द्वारा तेरापंथ की अनुशासना एवं संपदा कार्यक्रम की तथा ज्ञानशाला ने "मर्यादा महोत्सव - अमूल्य धरोहर" परिसंवाद द्वारा बहुत सूंदर प्रस्तुती दी। समाज द्वारा आगंतुक अतिथियों का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का नयी विद्या से कुशल संचालन साध्वी श्री मौलिकयशाजी एवं साध्वी श्री भावितयशाजी ने किया। सभी की उत्साह पूर्ण सहभागिता सराहनीय थी।
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