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साधना से चित्त समाधि : आचार्य महाश्रमण

बिधाननगर, २४ फरवरी. महातपस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में फरमाया कि हमारे जीवन में समाधि का बहुत बहुत महत्व है। हमारे चित्त में शांति रहें यह बड़ी चीज है। आचार्य प्रवर ने कहा कि दो स्थितियाॅ है एक तो सुविधा और एक शांति। सुविधा और शांति का थोड़ा कई संबंध हो सकता है। लेकिन  सुविधा अलग चीज है शांति अलग चीज है। गृहस्थ लोगो के पास सुविधा के साधन बहुत होते है। बड़े बड़े बंगले, यात्रा केे लिए प्लेन - कार कितने कितने साधन गृहस्थ के पास उपलब्ध हो सकते है और खाने पीने के लिए अच्छे अच्छे पदार्थ होते है। पर सुविधा होने से शांति हो ही जायेगी यह कहना मुश्किल है। सुविधाओ के होने पर भी मन में भी अशांति हो सकती है।  एक आदमी जो न कार में न ट्रेन में न प्लेन में और न ही ए.सी के कमरे में बेठता है। फिर भी उसके मन में बड़ी शांति समाधि हो सकती है और एक साधनाशील साधु के मन में जो शांति समाधि हो सकती है वह समाधि बड़े बड़े धनाढ्यों के चित्त में भी न हो। साधना से शांति मिलती है और सुविधा से शांति मिलना आवश्यक नही है।
शांति और समाधि पाने के लिए सत संकल्प जीवन में होना चाहिए। समाधि की साधना जो आदमी करता है। वह दुनिया का विशिष्ट आदमी होता है। तो हम समाधि पर ज्यादा घ्यान दें कि जीवन में समाधि रहें शांति रहें।
आचार्य श्री के आह्वान पर सभी ने अपने स्थान पर खड़े होकर सद्भावपूर्ण व्यवहार रखने ईमानदारी का पालन करने व नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प लिया।
रोज की एक सलाह पुस्तक के बंगाली भाषा में अनुवादित संस्करण की प्रति अशोक जी पारख ने पूज्य प्रवर को निवेदित की.
पूज्य प्रवर के स्वागत में  सांसद एस. एस. अहुवालिया, गोरखालेण्ड प्रमुख सेकेट्री रोशन गिरि,  मिनिस्टर गयासुदीन मोला साहब,  दार्जिलिंग बौद्व पाल्दीन लामा,  नवरतमल पारख, सज्जन देवी पारख ने अपने विचार प्रस्तुत किए। पारख परिवार की और से पूज्य प्रवर के स्वागत मे गितिका की प्रस्तुति दी। और पारख परिवार की और से पूज्य प्रवर के स्वागत मे परिसंवाद हुआ। संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।

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