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जीवन में धर्म की साधना करे: आचार्य महाश्रमण

लसनपुर.अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री के नेतृत्व में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संदेश को लेकर चल रही अहिंसा यात्रा आज सुबह गुलाबबाग से लसनपुर पहुंची। 
आचार्य श्री महाश्रमणजी लसनपुर में प्रवचन फरमाते हुए 
महातपस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में फरमाया कि- आत्मा व शरीर दोनों अलग-अलग हैं। आत्मा को छेदा नहीं जा सकता, उसे काटा नहीं जा सकता, उसे गीला नहीं किया जा सकता और नहीं उसे सुखाया जा सकता है। एक उदाहरण देते हुए कहा कि मान लो कि एक आदमी को सोने की थाल मिल जाए। यदि वह व्यक्ति खुद या अपने किसी विशिष्ट अतिथि को उसमें भोजन कराए तो बात समझ आती है, लेकिन उसमें यदि घर साफ करने के बाद जो कचरा बचता है उसे उठा कर फेंके। उसी प्रकार किसी को अमृत कलश मिल जाय, अब वह उसके खुद पीए दूसरों को पिलाए तो बात समझ आती है लेकिन उस अमृत से गंदे पैरों को धोए तो लोग ऐसे लोगों को मूर्ख कहते हैं। आदमी ठीक उसी प्रकार अपने इस अनमोल जीवन को भौतिक सुखों में लिप्त कर बर्बाद कर रहा है। पाप से बचिए, भजन करिए और इस जीवन का सदुपयोग करिए। ‘बहुत कमाए हीरा-मोती, लेकिन कफन में जेब नहीं होती’ की बात करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि धन कमाने से अच्छा धर्म कमाया जाए। मर जाने पर धन साथ नहीं जाता लेकिन धर्म जा सकता है। आदमी को धन के अर्जन में ईमानदारी व उपभोग में संयम बरतना चाहिए। ईमानदारी का उदाहरण देने के लिए आचार्यश्री ने ईमानदार लकड़हारे की कहानी सभी को सुनाते हुए कहा कि जिस तरह लकड़हारे में ईमानदारी बरती तो उसके जीवन में सुधार हो गया। उसी प्रकार आदमी अपने जीवन में ईमानदारी लाने का प्रयास करे तो उसके जीवन में भी सुधार हो सकता है। धर्म की साधना करे और आदमी अपने जीवन को मोक्ष के पथ पर अग्रसर करे तो लोक-परलोक को सुधारा जा सकता है। 
आचार्यश्री के सान्निध्य में सभी ग्रामवासियो ने जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संकल्प लिया। कार्यकम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।







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