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तप त्याग से निखरता है जीवन : आचार्य श्री महाश्रमण


इस्लामपुर, 21 फरवरी. महातपस्वी, महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में फरमाया किं आदमी संसार में सुखी कैसे बन सकता है ? कई बातें इस संबंध में बताई गयी हैं। इनमें सबसे पहली बात बताई गयी अपने आपको तपाओ। आराम व सुविधावृत्ति को त्यागो। जीवन में यदि आगे बढ़ना है तो हमें इन्द्रिय सुखों से कुछ विरत होना होगा। कुछ कठिनाईयों को झेलने का मादा रखना चाहिए। एक कार्यकर्ता काम करता है, तो वह यह नहीं देखता कि मुझे कहां कितनी सुविधा मिल रही है, वह तो काम के लिए जाना जाता है। कहीं जमीन पर सोना हो जाता है तो कहीं सोने के लिए पलंग सहित अन्य सुविधाएं प्राप्त हो सकती हैं। उसके सामने जैसी स्थिति आए उसका सामना उसे करना चाहिए। सोना जब तपता है तो उसमें निखार आता है उसी तरह आदमी जब अपने जीवन में तप करता है, त्याग करता है तो वह निखरता है। 

साधु-साध्वियों की उपस्थिति में प्रति चतुर्दशी को होने वाली हाजरी के उपक्रम को संचालित करते हुए आचार्यश्री ने मर्यादाओं के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा प्रदान की।

आचार्यश्री के स्वागत में निधि बोथरा व दीपिका बोथरा ने गीत प्रस्तुत किया। राजू बैद, लक्ष्मीपत गोलछा व प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष प्रमोद जी सिंघी ने अपने भाव व्यक्त किए। कार्यकम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया.

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