रानीनगर, 1 मार्च। आज पूज्यप्रवर आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सानिध्य मे 67 वां अणुव्रत स्थापना दिवस मनाया गया । पूज्यप्रवर ने श्रद्वालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि- साधुओं के व्रत को यदि उत्कृष्ट मार्ग कहा जाए और हिंसा व बुराईयों के मार्ग को अधम मार्ग कहा जाए तो इन दोनों मार्गों पर न चल पाने वाले मानवों के जीवन के लिए अणुव्रत का मध्यम मार्ग बनता है। साधुओं के पांच महाव्रत होते हैं, जिनका पालन साधारण मानव के लिए मुश्किल हो सकता है और आदमी पूर्णतया अधम का मार्ग भी नहीं अपना सकता तो उसके लिए अणुव्रत एक ऐसा माध्यम है जो उसके जीवन को सुख, शांति व समृद्धि की ओर ले जाता है। इसकी एक आदर्श आचार संहिता बनाई आचार्य तुलसी ने। उन्होंने इसका शुभारंभ इस आधार पर किया कि अणुव्रत के नियमों का पालन करने वाले के लिए किसी जाति, धर्म व संप्रदाय का होने कोई मायने नहीं रखता। यहां तक कि जिस व्यक्ति को किसी भी धर्म में आस्था ना हो, वह नास्तिक हो तो अणुव्रत का अनुपालन कर सकता है।
आचार्यश्री ने फरमाया कि आचार्य तुलसी ने अणुव्रत के रूप में एक दीपक जलाया जो आज हजारों दीपकों को जला मानव जीवन को अंधकार से दूर करने का काम कर रहा है। आज आदमी के जीवन में हिंसा, लोभ, मोह, गुस्सा आदि का जो अंधकार फैला हुआ है उसे इस अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम से दूर भगाया जा सकता है। सभी नियम एक दीए के समान हैं जो मानव जीवन को प्रकाशित करने का काम कर रहे हैं। जीवन के अंधकार को दूर करने के लिए अणुव्रत की दीप मालाएं सभी को जलानी होगी। आचार्यश्री ने अहिंसा यात्रा के तीन संकल्पों को अणुव्रत का आधार बताते हुए कहा कि सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति में अणुव्रत का सार समाहित हो गया है। क्योंकि हिंसा, चोरी, गुस्सा आदि ही तो आदमी की जीवन की सभी बुराईयों का जड़ है। इन बुराइयों को ही समाप्त करने के लिए अणुव्रत का शुभारंभ हुआ तथा अणुव्रत का सार बन गया सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति। अणुव्रत को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आचार्य महाप्रज्ञ जी की यात्रा का वर्णन करते हुए आचार्यश्री ने फरमाया कि राजस्थान से कन्याकुमारी व राजस्थान से कोलकाता सहित देश के कई राज्यों का भ्रमण कर लोगों में इस दीप प्रज्जवलित किया। आज अणुव्रत स्थापना की बात तो इससे जुड़ी संस्थाएं अणुव्रत महासमिति, अणुव्रत विश्वभारती, अणुव्रत न्यास व राष्ट्रीय अणुव्रत शिक्षक संघ चार संस्थाएं हैं तो इसके प्रसार में काम कर रहे हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ मदन मालू द्वारा अणुव्रत के मंगल गीत से हुआ। मुनि अशोक कुमार जी ने पूज्य प्रवर के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत किए। अणुव्रत समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुरेंद्र जैन, सिलीगुड़ी के विधायक रूद्रनाथ भट्टाचार्य, अणुव्रत विश्व भारती के अध्यक्ष श्री संचय जैन , नवरतन पारख ने अपने विचार प्रस्तुत किए। इसके अलावा महामंत्री श्री अरूण संचेती, जैविभा के अध्यक्ष धर्मचंद लुंकड़, टीपीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सलिल लोढा़, पश्चिम बंगाल के विशिष्ट लेखक डीएन शुक्ला, आशु कवी दिनेश लालवानी, अरूण संचेती, सज्जन देवी पारख ने भी आचार्यश्री का स्वागत किया। साथ ही पारख परिवार के ओर से गीतिका की प्रस्तुति दी गई।
स्वागत भाषण अणुव्रत समिति सिलीगुड़ी के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र घोड़ावत ने और धन्यवाद ज्ञापन महामंत्री अरूण संचेती ने दिया । मंच संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया । अणुव्रत समिति सिलीगुड़ी के मंत्री श्री करणसिह जैन (मालू) ने अणुव्रत दिवस कार्यक्रम का मंच संचालन किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आचार्य प्रवर को अणुव्रत पत्रिका भी भेंट की ।
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