अग्रसेन भवन में आयोजित प्रातः कालीन मुख्य प्रवचन में धर्मश्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाया कि- एक सिंद्धांत है कि संसारी अवस्था में आत्मा का पुनर्जन्म होता है। पुनर्जन्म का सिद्धान्त धार्मिकता का आधारभूत सिद्धांत है। आत्मा का संसार में परिभ्रमण हो रहा है, उस परिभ्रमण से छुटकारा पाने के लिए धर्म की, संन्यास की, साधुता की साधना अपेक्षित होती है।अगर इस जन्म के पीछे अगर मानो कुछ है ही नहीं तो इतनी ऊँची साधना की क्या अपेक्षा ? आस्तिक विचार धारा का सिद्धान्त है पुनर्जन्म । जबकि नास्तिक विचारधारा पुनर्जन्म को स्वीकार नही करती। चावार्कदर्शन का सिद्धान्त है कि यह दुनिया इतना ही है जितना इन्द्रियों का विषय बन रहा है, जो इन्द्रियों के द्वारा ज्ञात नही होता वह संसार है ही नहीं। इन्द्रियों के द्वारा सारा ज्ञान होना संभव नहीं है, यह आस्तिकवाद की धारणा है।
भगवान महावीर के एक श्रावक मद्दुक की घटना प्रसंग सुनाते हुए आचार्यप्रवर ने आगे फ़रमाया कि जैन दर्शन यह मानता है कि जिसका किसी इन्द्रिय से भी बोध न हो उसका भी अस्तित्व हो सकता है, आत्मा ऐसा तत्व है जो न तो आँखों से दिखाई देता है, न नाक से गंध आती है, न स्पर्श-इन्द्रिय से स्पर्श होता है,न स्वाद आता है, न कानों से सुना जा सकता है।जैन दर्शन कहता है कि आत्मा नाम का तत्व है और उसका पुनर्जन्म भी होता है। पुनर्जन्म के कारण और निवारण को स्पष्ट करते हुए उत्सुक जनसमूह को संबोधित करते हुए पूज्यप्रवर ने आगे फरमाया कि शास्त्रकार ने कहा है की कषाय प्रबल होते है वे पुनर्जन्म के मूल का सिंचन करते है। आगे से आगे जन्म इसलिए होता है कि आत्मा में राग-द्वेष,क्रोध,मान,माया,लोभ है। पुनर्जन्म से छुटकारा पाने के लिए सिंचन देने वाले इस कषाय रुपी पानी को सुखाना होगा।जब तक कषायों से मुक्ति नही मिलेगी तब तक आत्मा का पुनर्जन्म से छुटकारा नही होगा।
प्रवचन के पश्चात स्वाति डागा,किरण देवी छाजेड़ ने सुंदर गीत का संगान किया।महिला मंडल मंत्री पूजा छाजेड़ ने अपने विचार व्यक्त किये।कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया।
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Om arham
ReplyDeleteॐ अर्हम
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