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संयम जीवन बहुत बड़ी सम्पदा - आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्य श्री महाश्रमण प्रवचन 06 अप्रैल 201६, मानिकपुर
जैन श्वेतांबर तेरापंथ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आज एक दिन में दो गांवों को अपने  चरण रज से पावन किया। आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ सुबह सूर्योदय से पूर्व चोउरागुड़ी से विहार कर साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी को दर्शन देने उनके प्रवास स्थल पहुंचे। सूर्याेदय के बाद उन्हें दर्शन देकर आचार्यप्रवर बिजनी गांव के भाग्य को जगाने के लिए कच्चे व उबड़-खाबड़ रास्ते पर चल पड़े। एक श्वेतांबर तेरापंथी परिवार सहित कुल छह जैनी परिवार के श्रद्धालुओं के घरों को पावन किया साथ ही वहां के लोगों को भी अपनी अमृतमयी वाणी का रसपान करा पूज्यप्रवर लगभग साढे आठ बजे मानिकपुर आंचलिक महाविद्यालय के लिए प्रस्थान किया। बरसात के बाद निकली धूप तपा रही थी।  इसके बावजूद भी महातपस्वी के कोमल चरण मानव कल्याण के लिए चलते रहे। साढे ग्यारह बजे मानिकपुर आंचलिक कालेज पहुंचे। जहां महाविद्यालय के अध्यापकों व अन्य कर्मियों ने आचार्यश्री का स्वागत किया।

पूज्यप्रवर के दर्शन पाकर धन्य हुआ बिजनी गांव
आचार्यश्री की इस अनुकंपा से बिजनी गांव आज अपनी किस्मत पर इतरा रहा था। वहां के ग्रामीणों को मानवता का संदेश देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि यह मानव जीवन दुर्लभ है। इसका अच्छा उपयोग करना चाहिए। यदि इस मानव जीवन का उपयोग धर्म में हो तो जीवन सफल हो सकता है और आदमी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। 24 घंटे में से कुछ समय आदमी को धर्म की साधना और आराधना में लगाना चाहिए। वहां उपस्थित लोगों को अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्यों के तीन संकल्प यथा सद्भावपूर्ण व्यवहार करने, यथासंभव ईमानदारी का पालन करने व पूर्णतया नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प कराया। वहीं श्री सुशील सुराणा, श्री सुशील शर्मा व श्री रामप्रसादजी अग्रवाल ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति अर्पित की।
 निखारे अपने आप को -आचार्यश्री महाश्रमण

महातपस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में फरमाया कि सर्व विरति धारण करने वाले को पंडित कहा जाता है। विद्वान को भी पंडित कहा जाता है। ज्ञान के आधार पर भी आदमी पंडित बनता है और चरित्र के आधार पर भी पंडित बनता है। यदि कोई बाल्यावस्था में ही सर्व विरति धारण कर लेता है वह भी पंडित बन जाता है। परमपूज्य गुरुदेव तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी बाल्यवस्था में ही पंडित बन गए थे। विरति व संयम की दृष्टि से एक साधु चक्रवर्ती राजा, महाराजा, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति से भी बड़ा होता है। इसलिए साधुओं के सामने बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी नतमस्तक हो जाते हैं, वह त्याग का सम्मान होता है। इसलिए साधु को ध्यान देना चाहिए कि उसका संयम जीवन अच्छा रहे। संयम जीवन बहुत बड़ी सम्पदा है। संयम ऐसा अमूल्य रत्न है जिसे खरबों रुपए के मूल्य देकर भी नहीं चुकाया जा सकता। इसलिए साधु संयम की चद्दर को साफ व स्वच्छ रखने के लिए प्रतिक्रमण करता है। 
हाजरी का हुआ वाचन 
चतुर्दशी तिथि होने के कारण सभी साधु-साध्वियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी हाजरी दी तथा आचार्यश्री ने लेखपत्र का वाचन कर धर्मसंघ व आचार्य के प्रति निष्ठा व समर्पण के भाव को जागृत कराया। 
छात्रों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प 

आचार्यश्री के समक्ष महाविद्यालय के छात्र-छात्राएं भी श्रद्धालुओं के साथ उपस्थित थे। आचार्यश्री के आह्वान पर मानिकपुर के श्रद्धालु व महाविद्यालय के छात्रों ने भी सद्भावपूर्ण व्यवहार करने, यथासंभव ईमानदारी का पालन करने व पूर्णतया नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प स्वीकार किया। पुज्य प्रवर के स्वागत में असिस्टेंट प्रोफेसर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दीे। संचालन मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने किया।







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