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चेतन व अचेतन में समाहित है दुनियाः आचार्यश्री महाश्रमण


सरभोग, 07.04.2016. परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी धवंल सेना सहित आज सुबह माणिकपुर से विहार कर सरभोग में स्थित बरनगर जेआरपीएचएस एंड एमपी स्कूल पधारे। जहां अहिंसा यात्रा का भव्य स्वागत हुआ।          

महातपस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को चेतन व अचेतन के बारे में विस्तृत ज्ञान देते हुए कहा कि पूरी दुनिया चेतन व अचेतन में समाहित है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि पूरे ब्राह्मांड के ये सार तत्व हैं। चेतन अर्थात जीव व अचेतन अर्थात अजीव। इसका उदाहरण मानव शरीर को मान लें तो इसमें आत्मा चेतन और आदमी का स्थूल शरीर अचेतन हो सकता है। मानव में चेतन तत्व आत्मा है। उसके बिना शरीर अचेतन हो जाता है। आत्मास्थायी  तत्व है और शरीर एक निश्चित समय के बाद समाप्त हो जाता है। आत्मा अमूर्त होती है जो आंखों से दिखाई नहीं देती। आत्मा स्थायी होते हुए भी गतिमान होती है। आत्मा के भीतर अनंत ज्ञान समाहित है, किंतु सभी मनुष्यों का वह ज्ञान पूरी तरह उजागर नहीं हो पाता। इसलिए आदमी को चाहिए जैसे वह शरीर पर ध्यान देता है उसी तरह आत्मा पर भी ध्यान दे तो उसका जीवन सफल हो जाए और आत्मा सद्गति को प्राप्त हो जाए। इससे आदमी का कुछ अंशों में बेहतर ज्ञान भी उजागर हो सकता है। वह प्रबल साधना व तपस्या के माध्यम से केवल ज्ञान को भी प्राप्त कर सकता है।
परमपावन आचार्यश्री ने फरमाया कि आकाश के दो भाग होते हैं लोकाकाश व अलोकाकाश।  लोकाकाश को समुद्र में उभरे एक टापू के समान मान लिया जाए तो अलोकाकाश एक विशाल समुद्र की तरह अनंत होता है। अलोकाकाश में लोकाकाश एक बिन्दु के समान है। लोकाकाश में ही जीव-अजीव होते हैं। अलोकाकाश में जीवन और अजीव कोई जा ही नहीं सकता। यदि नास्तिक विचारधारा के लोग आत्मा, जीव-अजीव, लोकाकाश-अलोकाकाश को नहीं मानते तो उनसे इस संदर्भ में चर्चा होनी चाहिए। यह कोई आवश्यक नहीं कि जो चीज दिखाई दे उसका ही अस्तित्व हो। जो दिखाई नहीं भी देता उसका भी अस्तित्व हो सकता है। यदि विरोधी के पास भी ज्ञान हो तो उसका सम्मान होना चाहिए। जैन दर्शन में जिन पांच ज्ञानों की मान्यता है - मति ज्ञान, श्रुतिज्ञान, अवधि ज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान व केवल ज्ञान, उनका भी आचार्यश्री ने विस्तृत विवेचन किया।
सरभोगवासियों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प 
सरभोग वासियों ने आचार्यश्री के दर्शन कर खुद को कृतार्थ किया और आचार्यश्री के आह्वान पर अहिंसा यात्रा तीन संकल्प यथा सद्भावपूर्ण व्यवहार करने, यथासंभव ईमानदारी का पालन करने व पूर्णतया नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प स्वीकार किया।
आचार्यश्री का किया स्वागत 
श्रीमती प्रभा देवी चोरडि़या ने चोरडि़या परिवार से जुड़े चरित्रात्माओं को याद करने के बाद गीतिका के माध्यम से आचार्यश्री का स्वागत किया। इसके अलावा श्रीमती शिल्पा बोथरा, श्रीमती मयना देवी माहेश्वरी ने गीतिका के रूप में अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। श्री हरीकिशन जी सारड़ा ने भी अपनी भावनाओं को आचार्यश्री के समक्ष प्रस्तुत कर आशीर्वाद प्राप्त किया। संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।



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