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ज्ञेय को जाने, हेय को छोड़े और उपादेय को ग्रहण करे

बरपेटारोड , 10 अप्रैल. आचार्य श्री महाश्रमणजी ने फरमाया कि आदमी सुनकर कल्याण को जानता है और सुनकर के ही पाप को जानता है। दोनो को जानने के बाद जो श्रेयस्कर हो उसका आचरण करना चाहिए। तीन शब्द है-हेय, ज्ञेय, और उपादेय । छोडने योग्य को हेय, जानने योग्य को ज्ञेय और ग्रहण करने योग्य को उपादेय कहा जाता है।

आचार्य प्रवर ने फरमाते हुए कहा कि नव तत्वो में आश्रव, पुण्य, पाप और बन्ध देय है। संवर, निर्जरा और मोक्ष यह उपादेय है। ज्ञेय तो नव ही तत्व होते है। यर्थाथ को जान लेना अप्रेक्षा अनुसार ठीक है पर ग्रहण उसी को करना चाहिए जो ग्रहण करने योग्य हो और छोडना उसी को चाहिए जो छोडने के लायक हो। 

परमपूज्य गुरूदेव तुलसी ने अणुव्रत आंन्दोलन की बात बताई। गृहस्थों के लिए अणुव्रत के नियम ग्रहणीय है। हिंसा, झुठ आदि पाप हेय होते है। हेय, ज्ञेय, और उपादेय का बोध अगर ठीक है और बोध के बाद क्रियान्विति का प्रयास हो तो हम पूर्णता की दिशा में काफी आगे बढ सकते है।

सांसद अर्जुनरामजी मेघवाल ने किए दर्शन 
बीकानेर के सांसद अर्जूनराम जी मेघवाल ने पूज्यप्रवर के दर्शन कर अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। 

जैविभा द्वारा प्रकाशित आगम साहित्य का लोकार्पण 

जैन विश्व भारती के द्वारा प्रकाशन के क्रम में एक आगम का प्रकाशन हुआ है- ववहांरो । उसके अनुवादक विवेचक के रूप में डा.साध्वी श्री शुभ्रयशा ने  पूज्यप्रवर के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत किए। जैन विश्व भारती के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मनोज लूणिया व कोषाध्यक्ष प्रमोद बैद ने आगम की प्रति पूज्यप्रवर को निवेदित की. 

आचार्यप्रवर का किया भावपूर्ण स्वागत एवं स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प 
पूज्य प्रवर के स्वागत में बहिर्विहार में जाने वाली साघ्वियों द्वारा एक समुह गीतिका की प्रस्तुति दी गयी। मुनि मनन कुमार ने अपनी जन्म भूमि पर आचार्य प्रवर का स्वागत करते हुए अपनी भावाभिव्यक्ति दी। जवरलाल फलोदिया जिन्होंने पूज्य्प्रवर की 54 वर्ष की आयु चल रही है इसलिए 54 दिन की तपस्या की है। आज उन्होने गुरूदेव के मुखारबिन्द से 54 की तपस्या का प्रत्याखान किया। उनके परिवार की और से सबसे पहले कन्हेयालाल फलोदिया एवं आचार्य श्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था संमिति के संहसयोजक इन्द्रचन्द बाठिया ने अपने विचारो की अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने अहिंसा यात्रा के तीन संकल्प सद्भावपूर्ण व्यवहार करने, यथासंभव ईमानदारी का पालन करने व पूर्णतया नशामुक्त जीवन जीने के संकल्प कराए। लोगों ने इन संकल्पों को सहर्ष स्वीकार किया। संचालन मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने किया। 
















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