बरपेटारोड,11.अप्रैल. आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में फरमाया कि जो गुरू सतत् मुझे अनुशासना प्रदान करते है, उन गुरूओ की में सतत् पूजा करता हूॅ। हमारे जीवन में गुरू का महत्वपूर्ण स्थान होता है। गुरू का ध्यान अपने गुरू की स्मृति करनी और कुछ अंशो में गुरू का दर्शन भीतर में हो सकता है। तेरापंथ धर्मसंद्य के प्रथम गुरू आचार्य भिक्षु थे और कुल दस गुरू अतीत में हो गए है।
गुरू के मुख से निकला हुआ वाक्य भी मंत्र का आधार या मंत्र बन जाता है। गुरू की कृपा को मोक्ष का आधार माना गया है। शिष्य के लिए जरूरी है कि वो गुरू प्रसाद एवं गुरुकृपा के अभिमुख रहने का प्रयास करें। शिष्य प्रयास करे कि मेरे पर गुरू की कृपा बनी रहें, गुरू के अनुशासन में रहूँ और गुरू का अनुग्रह बरसता रहें और मेरे द्वारा कभी भी गुरू की दष्ट्रि का, गुरू के इंगित का, गुरू के आदेश का प्रमादवश उल्लंधन न हो जाए।
पूज्य प्रवर के स्वागत में पूर्वोतर मारवाड़ी महिला समिति, धार्मिक महिला समिति, महेश्वरी महिला शाखा राणीसती महिला समिति आदि ने समुह रूप में परम पूज्य गुरूदेव के प्रति अपनी भावना की प्रस्तुति दी. ज्ञानशाला के छोटे-छोटे बच्चो द्धारा पूज्य प्रवर के सम़क्ष शानदार प्रस्तुति दी। कन्यामण्डल द्धारा पूज्य प्रवर के सम़क्ष शानदार नाटक की प्रस्तुति दी। संगीता बोथरा ने अपने विचारो की अभिव्यक्ति दी। लक्ष्मीकान्त बैगानी बिमल बैगानी और आकाक्षा जैन ने गीतिका की प्रस्तुति दी। संचालन मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने किया।
3 Comments
ॐ अर्हम
ReplyDeleteOm arham
ReplyDeleteOm arham
ReplyDeleteLeave your valuable comments about this here :