आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में फरमाया कि मनुष्य से गलती हो सकती है या गलती होना मनुष्य का लक्षण हो सकता है, किन्तु गलती का अहसास होते ही अपने आप को रोक लेना चाहिए। वह गलती दोबारा न हो इसका प्रयास करना चाहिए। ठोकर लग जाए तो उससे सीख लेना चाहिए। आदमी अपने किसी कार्य में असफल हो जाता है, लेकिन असफल होने के बाद निराश नहीं होना चाहिए। बल्कि उस असफलता से सीख लेते हुए आगे उस गलती को सुधारते हुए सफलता को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। हर असफलता हमें कोई न कोई सबक सीखाती है। आदमी को अपने जीवन में सम्यक पुरूषार्थ करना चाहिए। भूल हो गई तो उसका परिर्माजन कर लेना चाहिए।
लोगों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प
अहिंसा यात्रा के संकल्पों को यहां के लोगों को बताते हुए जब आह्वान किया तो लोगों ने सहर्ष सद्भाव पूर्ण व्यवहार करने, यथासंभव ईमानदारी का पालन करने व पूर्णतया नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प स्वीकार किया।
अपने आराध्य देव को अपने घर-आंगन में पाकर प्रफुल्लित बासुगांववासियों ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावनाओं की प्रस्तुति दी। श्रीमती प्रियंका पारख, श्री चिराग धारिवाल, श्री सुरेन्द्र धारिवाल ने अपनी भावाभिव्यक्ति आचार्यश्री के चरणों में अर्पित की। सुश्री प्रिती सेठिया व महिला मंडल ने गीतिका के माध्यम से आचार्यश्री का स्वागत किया। संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।
0 Comments
Leave your valuable comments about this here :