19 जुलाई,2016। परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी ने तेरापंथ स्थापना दिवस पर अपने उद्बोधन में फ़रमाया कि - जीवन के विकास के लिए भारतीय संस्कृति में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई है। गुरु की सन्निधि, प्रवचन, आशीर्वाद और अनुग्रह जिसे भी मिल जाए उसक जीवन कृतार्थता से भर उठता है। क्योंकि गुरु हितचिंतक, मार्गदर्शक, विकासप्रेरक और विघ्नविनाशक होते है। गुरु का जीवन शिष्य के लिए आदर्श बनता है। आज का दिन गुरु पूर्णिमा का है और आज के दिन ही तेरापंथ की स्थापना हुई और तेरापंथ धर्मसंघ को प्रथम गुरु के रूप में महामना आचार्य श्री भिक्षु मिले और वर्तमान में एकादशम गुरु आचार्य श्री महाश्रमण जी की अनुशासना प्राप्त है। इस पावन अवसर पर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि 256 वर्ष पूर्व केलवा में संत भीखण जी ने नव्य भव्य दीक्षा ग्रहण की। जिसे हम तेरापंथ स्थापना दिवस के रूप में मनाते है। आचार्य भिक्षु के पास विशेष बल था। उनमें श्रद्धा का बल था। आगमवाणी के प्रति समर्पण का भाव था। ज्ञान बल था। तेरापंथ में प्रमुख आधारभूत सूत्र पुरूष आचार्य भिक्षु रहे। तेरह साधुओं के आधार पर तेरापंथ नाम मिला। आचार्य भिक्षु ने इसे ’’हे प्रभो ! यह तेरापंथ ’’ के रूप में स्वीकार किया।
मूल मर्यादाः एक आचार्य की आज्ञा
पूज्यवर ने आगे फरमाया कि तेरापंथ के अस्तित्व में अनेक तत्व काम करते है। संगठन में प्राणवता होती है तभी वह दीर्घजीवी होता है। अतीत के 10 आचार्यों ने तेरापंथ के विकास, इसकी सुरक्षा का आयास किया। तेरापंथ की मर्यादाओं का भी इसके सौंदर्य में बड़ा योगदान है। तेरापंथ की मर्यादा रही है कि सभी एक आचार्य की आज्ञा में रहे। यह सभी मर्यादाओं का मूल है। एक आचार्य के बैनर के तले सभी साधु- साध्वियां रहे। आचार्य को उच्च स्थान दिया गया है। अपना- अपना शिष्य- शिष्या न बनाना तेरापंथ की एकता में आधारभूत है। विहार, चतुर्मास आचार्य की आज्ञा से करते है, यह भी प्रबंधन का सुंदर विधान है। आचार्य जिस शिष्य को उपयुक्त समझे, उसे अपना उत्तराधिकारी बना सकते है।
पूज्यवर ने फरमाया कि स्थापना होना एक बात है और संगठन का लम्बे समय तक चलना विशेष बात है। संगठन के जीवंत रहने के लिए तपस्या भी जरूरी है। सुविधावाद संगठन की जीवंतता के लिए खतरा है।
धर्मसंघ के साधु- साध्वियों और श्रावक- श्राविकाओं ने काफी संघर्ष किए है, परिश्रम किया है। व्यक्तिवाद को गौण कर संगठन के हित को सर्वोपरि रखा है। तेरापंथ में व्यक्ति नहीं, शासन मुख्य है।
साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि 256 वर्ष पूर्व हुई उथल पुथल ने धर्मक्रांति का रूप लिया। और इसकी परिणति तेरापंथ के रूप में हुई। यह धर्मसंघ अपने आप में अद्भुत है। एक आचार, एक समाचारी और एक आचार्य का नेतृत्व इस संगठन की नींव को मजबूत बनाता है। तेरापंथ आहर््त वाड़्मय के आधार पर चलता है। आज यह राजपथ है जिस पर लाखों लोग गतिमान है।
मुख्य कार्यक्रम में गुवाहाटी ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति दी। तेरापंथ महिला मंडल, गुवाहाटी ने गीतिका का संगान किया। आ.म.चा.प्र.व्य.स. गुवाहाटी के अध्यक्ष विमल नाहटा ने श्रद्धाभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम के अंत में संघगान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
मूल मर्यादाः एक आचार्य की आज्ञा
पूज्यवर ने आगे फरमाया कि तेरापंथ के अस्तित्व में अनेक तत्व काम करते है। संगठन में प्राणवता होती है तभी वह दीर्घजीवी होता है। अतीत के 10 आचार्यों ने तेरापंथ के विकास, इसकी सुरक्षा का आयास किया। तेरापंथ की मर्यादाओं का भी इसके सौंदर्य में बड़ा योगदान है। तेरापंथ की मर्यादा रही है कि सभी एक आचार्य की आज्ञा में रहे। यह सभी मर्यादाओं का मूल है। एक आचार्य के बैनर के तले सभी साधु- साध्वियां रहे। आचार्य को उच्च स्थान दिया गया है। अपना- अपना शिष्य- शिष्या न बनाना तेरापंथ की एकता में आधारभूत है। विहार, चतुर्मास आचार्य की आज्ञा से करते है, यह भी प्रबंधन का सुंदर विधान है। आचार्य जिस शिष्य को उपयुक्त समझे, उसे अपना उत्तराधिकारी बना सकते है।
पूज्यवर ने फरमाया कि स्थापना होना एक बात है और संगठन का लम्बे समय तक चलना विशेष बात है। संगठन के जीवंत रहने के लिए तपस्या भी जरूरी है। सुविधावाद संगठन की जीवंतता के लिए खतरा है।
धर्मसंघ के साधु- साध्वियों और श्रावक- श्राविकाओं ने काफी संघर्ष किए है, परिश्रम किया है। व्यक्तिवाद को गौण कर संगठन के हित को सर्वोपरि रखा है। तेरापंथ में व्यक्ति नहीं, शासन मुख्य है।
साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि 256 वर्ष पूर्व हुई उथल पुथल ने धर्मक्रांति का रूप लिया। और इसकी परिणति तेरापंथ के रूप में हुई। यह धर्मसंघ अपने आप में अद्भुत है। एक आचार, एक समाचारी और एक आचार्य का नेतृत्व इस संगठन की नींव को मजबूत बनाता है। तेरापंथ आहर््त वाड़्मय के आधार पर चलता है। आज यह राजपथ है जिस पर लाखों लोग गतिमान है।
मुख्य कार्यक्रम में गुवाहाटी ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति दी। तेरापंथ महिला मंडल, गुवाहाटी ने गीतिका का संगान किया। आ.म.चा.प्र.व्य.स. गुवाहाटी के अध्यक्ष विमल नाहटा ने श्रद्धाभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम के अंत में संघगान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
0 Comments
Leave your valuable comments about this here :