18 जुलाई, गुवाहाटी । तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी ने दैनिक प्रवचन करते हुए फ़रमाया कि ज्ञान, दर्शन, चरित्र व तप से ही मोक्ष मंजिल प्राप्त हो सकती है।
अर्हत् वांग्मय में कहा गया है कि मार्ग क्या होता है? दुनिया में अनेक मार्ग होते हैं। यदि सही मार्ग मिल जाये तो मुक्ति निश्चित हैं । अध्यात्म की दिशा में मोक्ष को अंतिम मार्ग बतलाया गया है। ज्ञान, दर्शन, चरित्र व तप से मोक्ष मार्ग मंजिल को प्राप्त कर सकते हैं। सर्वप्रथम ज्ञान की आराधना करने हेतु उपाध्यायों की आराधना करनी चाहिए। हमारे धर्मसंघ में उपाध्याय पद की व्यवस्था स्वतन्त्र नहीं हैं, एकमात्र आचार्य ही इस पद का दायित्व निभाते है। आचार्य दो पदों का सुशोभित करनेवाले होते हैं, सूत्र वाचन के कारण वे उपाघ्याय पद में आते है।और अर्थ की दृष्टि से आचार्य पद में। आचार्य व्यवस्थापक भी होते है। उपाधयाय का दायित्व पठन व पाठन का होता है। ज्ञान की आराधना करने का विकास करना चाहिए। कल सांयकालीन चातुर्मास प्राम्भ हो जायेगा इसमें साधू साध्वियों को ज्यादा से ज्यादा ज्ञान की आराधना करने का समय मिल सकता है। श्रावक समाज भी पच्चीस बोल, ज्ञान सिद्धान्त दीपिका , प्रतिक्रमण कंठस्थ करने का प्रयास करे। दर्शन भी एक प्रकार का साधन माना गया है, मोक्ष मार्ग में। चरित्र से आने वाले कर्मों को रोका जासकता है। तप के 12 प्रकारों में स्वाध्याय सबसे बड़ा तप माना गया हैे। वैराग्य वृद्धि की दृष्टि में सवाधयाय को सबसे बड़ा सहायक तप माना गया हैे। दर्शन की आराधना वही कर सकता है जो जिनेश्वर भगवान पर श्रद्धा बनाये रखता है। गुरु धारणा भी दर्शन की आराधना का एक अंग माना गया हैे। चातुर्मास में ज्यादा से ज्यादा त्याग , तप स्वाध्याय की आराधना करे। अधिक से अधिक समय धर्मोपासना में लगाये व सामायिक करने का प्रयास करे । अंत में फ़रमाया कि यह एक भाग्य उदय है जो हमें तेरापंथ धर्मसंघ मिला हैे। शासन से सम्बन्ध कभी न छूटे। शरीर भले छूटे पर शासन न छूटे। शासन के प्रति निष्ठा बनी रहे। शासन के प्रति जागरूकता बनी रहे यह कामनिय हे। अंत में मर्यादा पत्र का वाचन किया गया। चातुर्मासिक चतुर्दशी पर सभी साधू साध्वी वृन्द ने पंक्तिबद्ध खड़े होकर मर्यादा पत्र का वाचन किया।
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