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Acharya Shri Mahashraman Pravachan 25.07.16 Guwahati

निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सत्य हैः आचार्य श्री महाश्रमण
उपासक शिविर का हुआ शुभारम्भ; उपासको को धर्म की दी प्रेरणा


गुवाहाटी। 26जुलाई, 2016। परमपूज्य महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित उपासकों और श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए भगवान जिनेश्वर व आगमवाणी की आराधना का ज्ञान प्रदान करते हुए कहा कि जिनेश्वर भगवान राग- द्वेष से मुक्त होते है, सर्वज्ञ होते है। वे कभी झूठ नहीं बोलते। राग- द्वेष से युक्त आदमी ही झूठ बोलते है और जो राग- द्वेष से मुक्त हो, प्रियता और अप्रियता की स्थिति में मध्यस्थ, आत्मस्थ, अध्यात्मस्थ हो और जो वीतराग बन चुके है, वे झूठ से सर्वथा विरत होते है। उनकी वाणी अर्थात आगमवाणी या निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सत्य है। आदमी को वीतराग भगवान और उसकी वाणी की आराधना करनी चाहिए।
आचार्य श्री ने झूठ वोलने के चार कारण-क्रोध, लोभ, भय और हास्य को बताते हुए कहा कि जिनेश्वर भगवान इन चारों से मुक्त होते है। वे सदा सत्य ही बोलते है। वीतराग प्रवचन सत्य और पवित्र है।। उपासकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि धर्म की दृष्टि से  निग्र्रन्थ प्रवचन के प्रति श्रद्धा ही उपासक का धर्म है। उपासक को गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी माया, लोभ, मोह आदि से मुक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही निग्र्रन्थ प्रवचन के प्रति खुद को जागरूक रखते हुए दूसरों को भी प्रेरित करने का प्रयास करना चाहिए। अर्हतों के प्रति श्रद्धा, शुद्ध साधुओें के प्रति श्रद्धा की भावना रखनी चाहिए। देव, गुरु और धर्म के प्रति श्रद्धा रखने का प्रयास करना चाहिए। निग्र्रन्थ प्रवचन की आराधना करना अपने आप में बड़ी बात है। इसलिए उपासक को निग्र्रन्थ प्रवचन के प्रति श्रद्धा रख आराधना के प्रति निरंतर जागरूक रहने का प्रयास करना  चाहिए।
कार्यक्रम में दो सगे भाईयों ने अठाई और एक बालिका ने पांच की तपस्या का प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर से किया।

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