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मोक्षमार्ग पर चलने के लिए आत्मा को निर्मल बनाना होता हैः आचार्य श्री महाश्रमण

नवदीक्षितों को सामायिक चारित्र से छेदोपस्थापनीय चारित्र में किया अवस्थित 



गुवाहाटी.20 जुलाई, 2016. परमपूज्य महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने सात दिन पूर्व दीक्षित साधु- साध्वियों को आज सामायिक चारित्र से छेदोपस्थापनीय चारित्र में अवस्थित करते हुए प्रेरणादायी पाथेय में फरमाया कि साधु- साध्वी को मन, वचन और काय से हिंसा, चोरी, असत्य, अब्रह्मचर्य, परिग्रह और इन्द्रिय सुखों का त्याग कर साधना के पथ पर अग्रसर होने का प्रयास करना चाहिए। मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए आत्मा को निर्मल बनाना होता है और आत्मा को निर्मल बनाने के लिए कषायों को मंद करना जरुरी है। इसके लिए स्वाध्याय, ध्यान, प्रतिलेखन आदि कार्य पूर्ण मनोयोग से करने चाहिए। पूज्यवर ने 5 महाव्रत, 5 समिति और 3 गुप्ति की अखंड आराधना की प्रेरणा देते हुए कहा कि ये 13 करोड़ का खजाना आप सभी को प्राप्त है। अब इस खजाने की सुरक्षा और संवर्धन करना आप सभी का कर्तव्य है। आप लोगों ने जिस जागरूकता के साथ संयम को स्वीकार किया है उसी जागरूकता के साथ सदैव संयम पथ पर अग्रसर रहेंगे तो इस आध्यात्मिक खजाने का संवर्धन हमेशा होता रहेगा। प्रवचन कार्यक्रम में पूज्यवर ने सामायिक की प्रेरणा देते हुए कहा कि जैन शासन में सामायिक का बहुत महŸव है। सामायिक करने से कर्मों की निर्जरा होती है। और सामायिक के दौरान व्यक्ति पापों से भी बचा रह सकता है। सामायिक में लगने वाले 48 मिनिट में श्रावक ध्यान, जप व स्वाध्याय करके खुद के ज्ञान का विकास कर सकता है। 
कार्यक्रम में नवदीक्षित साध्वी समताप्रभा जी, साध्वी ऋद्धिप्रभा जी, साध्वी कमनीयप्रभा जी और साध्वी आदित्यप्रभा जी ने सामूहिक रूप से अपने सप्तदिवसीय अनुभवों केे साथ भावों की अभिव्यक्ति दी। नव दीक्षित मुनि नमिकुमार जी, मुनि सत्यकुमार जी, मुनि रत्नकुमार जी और बाल मुनि केशीकुमार जी ने अपने सप्त दिवसीय अनुभव सुनाते हुए भावाभिव्यक्ति दी।
गुवाहाटी की सुनीता मालू ने पूज्यप्रवर से मासखमण तप का प्रत्याख्यान किया। आ.म.चा.प्र.व्य.स. के अध्यक्ष विमल नाहटा ने पावस प्रवास- 2016 की बुकलेट का पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पण किया।
 

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