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जीवन में ज्ञान और आचरण का संयोग होना चाहिए - आचार्यश्री महाश्रमणजी

आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को दिया आचार और व्यवहार में अहिंसा और ईमानदारी रखने का ज्ञान 


29 नवम्बर 2016 उमश्निंग, रि-भोई (मेघालय) : कहीं-कहीं किसी विशेष क्षेत्र का विशेष सौभाग्य जगता है जहां अहिंसा यात्रा के प्रणेता महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरणरज दूसरी बार पड़ते हैं। ऐसा ही सौभाग्यशाली गांव बना उमश्निंग। जी हां ! ऐतिहासिक शिलोंग प्रवास सुसम्पन्न कर शिलोंग की वादियों से आचार्यश्री सी पुनः गुवाहाटी की ओर निकल पड़े हैं मानवता के संदेशों को संप्रसारित करने के लिए। अब क्रमशः अहिंसा यात्रा मैदानी भाग की ओर बढ़ती जा रही है। अब अहिंसा यात्रा गुवाहाटी होते हुए अपने अगले वर्ष 2017 तक के चतुर्मास प्रवास से पहले असम, पश्चिम बंगाल, बिहार के विभिन्न जिलों और सैकड़ों गांवों को मानवता का संदेश देकर उन्हें अपने जीवन को शांतिमय बनाने के लिए प्रेरित करेगी। 
मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ उमश्निंग पहुंचे। जहां सेंट माइकल वोकेशनल सेन्टर में प्रवास किया और इसी परिसर से ग्रामीणों और श्रद्धालुओं को ज्ञान प्रदान कर उन्हें बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के यहां दूसरी बार पदार्पण ने जैसे ग्रामीणों के सोए भाग जगा दिए। मानवता के महामसीहा का अपने गांव में दूसरी बार आगमन और उनसे ज्ञान प्राप्त कर श्रद्धालु अपने आपको धन्य महसूस कर रहे थे। 
आचार्यश्री ने लोगों को व्यवहार और आचार को पवित्र बनाए रखने का ज्ञान प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में ज्ञान और आचरण का संयोग होना चाहिए। आचरण को अच्छा बनाने के लिए आदमी को ज्ञान होना चाहिए। अज्ञानी भला क्या जान पाएगा कि आचरण और व्यवहार कुशलता कैसी होती है। आदमी को आचरण अच्छा बनाने के लिए धर्म से युक्त व्यवहार करना चाहिए। कहा गया है जिस पथ पर ज्ञानी चले हैं, उसका अनुसरण करना चाहिए। आदमी के जीवन में अहिंसा और ईमानदारी होनी चाहिए। बात-बात मंे मृषावाद बाहरी व्यवहार के साथ भीतर की भावना को भी प्रदूषित करता है। हिंसा, चोरी, झूठ व कपट व्यवहार और आचार को प्रदूषित करने वाले होते हैं। इससे आदमी को बचने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए आदमी को अहिंसा और ईमानदारी का पालन करना चाहिए और अपने व्यवहार और आचार को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को जीवन में अहिंसक बनने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने लोगों को प्रेरणा करते हुए कहा कि हिंसा आदमी को नरक गति और झूठ और छल-कपट तिर्यंच गति के हेतु होते हैं। आदमी को इन दुर्गतियों से बचने का प्रयास करना चाहिए और सुगति के अहिंसा और ईमानदारी के पथ पर चलने का प्रयास करना चाहिए। जीवन को अशुभ योगों से बचा शुभ योग में लगा अपने जीवन के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। 
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त अणुव्रत महासमिति के पूर्व अध्यक्ष श्री बाबूलाल गोल्छा ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। 
चन्दन पाण्डेय

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