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समय का नियोजन सफलता का सूत्र : आचार्यश्री महाश्रमणजी

आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को अपने जीवनकाल की समीक्षा कर स्वयं में सुधार करने का दिया ज्ञान 

आचार्यश्री महाश्रमणजी

          30 नवम्बर 2016 जयंत्रू, रि-भोई (मेघालय) : अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता के साथ वर्तमान में मेघालय की यात्रा पर है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मेघालय राज्य के इतिहास के साथ ही तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में पहली बार ऐसी यात्रा के साथ तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य का आगमन और प्रवास हुआ। इस ऐतिहासिक यात्रा और प्रवास को संपन्न कर इतिहास पुरुष, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अब पुनः अपनी यात्रा के साथ दिन-प्रतिदिन पहाड़ों से नीचे उतर असम के मैदानी भाग की ओर बढ़ चले हैं। अपनी धवल सेना के साथ शांतिदूत बुधवार को जब उमस्निंग से चले तो मानों ऐसा महसूस हो रहा जैसे कोई झरना अपने श्वेत-धवल धारा के साथ अपनी लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जा रहा हो। राष्ट्रीय राजमार्ग पर जहां आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ ऐसा आभास करा रहे थे तो वहीं मार्ग के एक किनारे से कल-कल ध्वनि के साथ बहती नदी भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी। खुबसूरत लेकिन घुमावदार रास्तों पर लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जयंत्रू गांव स्थित सेंट जाॅन्स सेकेण्ड्री स्कूल पहुंचे। 
रि-भोई जिला शायद के यह गांव शायद अत्यधिक भाग्यशाली हैं, जिन्हें आचार्यश्री के चरणरज से पावन होने का दुबारा सुअवसर प्राप्त हुआ। आचार्यश्री ने स्कूल परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को यदा-कदा स्वयं को देखने, स्वसंप्रेक्षा करने का ज्ञान प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को यदा-कदा अपने अतीत का सिंहावलोकन और भविष्य की कार्य योजना के बारे में सोचना चाहिए। आदमी यह सोचे कि अब तक के अपने जीवनकाल में विशेष कार्य क्या किया ? कहीं कोई पाप, कहीं कोई पुण्य या कोई नेक और पुनीत कार्य किया हो तो उसकी समीक्षा होनी चाहिए। वैसे तो आदमी को प्रतिदिन अपने कृत कार्यों की समीक्षा करनी चाहिए। इससे आदमी अपने समय का सदुपयोग करने और बुराइयों को छोड़ने का प्रयास कर सकता है। जीवन के किस काल में क्या कार्य करना है, इसका भी निर्णय स्वयं की समीक्षा से संभव हो सकता है। 25 वर्ष की अवस्था ज्ञानार्जन करने का होता है। उस दौरान आदमी को ज्ञानार्जन में समय लगाने का प्रयास करना चाहिए। जिस अवस्था में जो काम करना है, वह ससमय हो जाए तो सम्यक व्यवस्था हो सकती है और आदमी का जीवन सफल बन सकता है। 
आचार्यश्री ने कहा कि समय प्रबन्धन के लिए सर्वप्रथम अपनी दिनचर्या को सुव्यवस्थित करने का प्रयास करन
चाहिए। आदमी की दिनचर्या यदि सुव्यवस्थित होगी तो अपने जीवन का सही सदुपयोग कर सकता है। जो काम समय हो उसे ससमय पूर्ण कर लेना चाहिए। ऐसा करने वाला आदमी अपने जीवन में सफल हो सकता है, अपना जीवन शांति में व्यतीत कर सकता है। समय के साथ आदमी को मोड़ भी लेना चाहिए और अपनी कार्यशैली में बदलाव भी लाना चाहिए। समयानुसार परिवर्तन कर आदमी अपने जीवन को अच्छा बना सकता है।




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