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जीवन में धैर्य धारण करें : आचार्यश्री महाश्रमण

असम सरकार के मुख्य सचिव महोदय ने आचार्यश्री के समक्ष आजीवन मद्यपान न करने का संकल्प स्वीकार किया 

आचार्यश्री महाश्रमणजी

     05.12.2016 उल्लूबाड़ी, गुवाहाटी (असम) : सोमवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ असम की राजधानी दिसपुर स्थित राज्य के विधानसभा भवन परिसर में अवस्थित विधानसभा अध्यक्ष श्री रणजीत दास के आवास पहुंचकर विधानसभा भवन और उनके घर को अपने चरणरज से पावन कर दिया। आचार्यश्री उनके घर में लगभग आधे घंटे विराजमान हुए। इस दौरान असम सरकार के मुख्य सचिव श्री विनोद पिपरसानिया सहित अनेक उच्चाधिकारीगण भी उपस्थित थे। वहीं आचार्यश्री से वहां से उल्लूबाड़ी स्थित सिग्नेचर एस्टेट पहुंचकर उसे भी अपने श्रीचरणों से पावन किया और वहां आयोजित कार्यक्रम में श्रद्धालुओं को अपनी अमृवाणी से अभिसिंचन प्रदान किया।
सर्वप्रथम अहिंसा यात्रा के प्रवक्ता मुनि कुमारश्रमणजी ने लोगों को अहिंसा और आचार्यश्री के बारे में विस्तार से बताया। श्रीमती रणजीत दास ने अपने घर में आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। असम सरकार के मुख्य सचिव श्री विनोद पिपरसानिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति व्यक्त करते हुए कहा कि हम सबका यह सौभाग्य है कि आप जैसे महान संत असम प्रान्त में छह महीने से अधिक रहे। मेरा तो मानना है कि महापुरुष जहां भी जाते हैं उनकी चरणधूली हजारों सालों तक आशीर्वाद देती रहती है और आपने तो लगभग पूरे असम को अपने चरणरज से पावन कर दिया है। आप जैसे महापुरुष का यहां आगमन होने मात्र से नवीन ऊर्जा का संचार होने लगा है। उन्होंने आचार्यश्री के जीवन को मिशाल बताते हुए कहा कि आचार्यश्री के जीवन में केवल चलना ही चलना है। इससे हम सभी प्रेरणा का स्रोत माने कि हम सभी को जीवन में निरन्तर चलना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। हम सभी आपकी यात्रा के उद्देश्यों को आपके जाने के बाद भी याद रखें और उन्हें अपने जीवन में उतार लें तो निःसंदेह जीवन सफल हो जाएगा, संवर जाएगा। आचार्यश्री के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि असम की जनता पर आपकी कृपा बनी रहे ताकि यहां की जनता का जीवन भी सुखमय और खुशहाल बन सके। 
आचार्यश्री ने उपस्थित विशिष्ट गणमान्यों को जैन धर्म की साधुचर्या के बारे में विस्तार से वर्णन किया। अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्यों संग अहिंसा यात्रा द्वारा अब तक की गई पदयात्रा और आगे की प्रस्तावित यात्रा के विषय में भी विस्तार से बताते हुए कहा कि यदि आदमी अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य-सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति को अपने जीवन में उतार ले तो उसका कल्याण हो सकता है। देश में जाति, धर्म, पार्टी और भाषा के विविधताओं के बावजूद भी आदमी को सद्भावना के साथ रहना चाहिए, परस्पर मैत्री का भाव हो। जीवन में नैतिकता का विकास होना चाहिए। आदमी नशामुक्त जीवन जीने का प्रयास करे तो जीवन में और अधिक शांति की प्राप्ति हो सकती है। आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हम साधुओं को न तो नोट चाहिए, न वोट चाहिए, न प्लाॅट और न कोट चाहिए। हम तो मनुष्यों से उसके जीवन की खोट मांगते हैं। हम असम के विधानसभा अध्यक्ष जी के यहां आए हैं। यहां की जनता में खूब शांति रहे, आध्यात्मिकता का विकास हो, मंगलकामना। आचार्यश्री मुख्य सचिव को उत्प्रेरित करते हुए कहा कि आप यदि हमें भिक्षा में यदि कुछ देना चाहें तो आजीवन मद्यपान न करने का संकल्प स्वीकार कर लें। आचार्यश्री के आह्वान मुख्य सचिव महोदय ने आचार्यश्री के समक्ष आजीवन मद्यपान न करने का संकल्प स्वीकार किया। मुख्यसचिव ने एक पुस्तक भी आचार्यश्री के चरणों में समर्पित की। 
इसके उपरान्त आचार्यश्री का काफिला आगे की ओर बढ़ चला। आचार्यश्री अभी गंतव्य से कुछ किलोमीटर दूर ही थे कि असाधारण साध्वीप्रमुखाजी साध्वियों संग आचार्यश्री के दर्शन को पधारीं। गुरु और शिष्य के अनुपम मिलन के गवाह बने सैकड़ों श्रद्धालु। कुछ क्षण आचार्यश्री एक पुलिया के नीचे विराजमान हुए। साध्वियों ने आचार्यश्री की सकुशल शिलोंग यात्रा की सम्पन्नता कर पुनः गुवाहाटी आगमन पर गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। कुल लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री उल्लूबाड़ी स्थित सिग्नेचर एस्टेट के परिसर में पधारे। एस्टेट इन्फिनिट्री के डायरेक्टर श्री आर.के. पोद्दार सहित तमाम लोगों ने आचार्यश्री का स्वागत किया। 
परिसर में बने प्रवचन स्थल से आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को धैर्य धारण करने का ज्ञान प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को जीवन धैर्य रखने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने धीर शब्द को व्याख्यायीत करते हुए कहा कि विकास का फिसलन उपलब्ध होने पर भी जिसका चित्त विकृत नहीं होता, वह धीर होता है। वह सहन करने वाला होता है। धैर्य धारण करने वाला आदमी अपने जीवन को उन्नत बना सकता है। धलीर आदमी धैर्य बनाए रखता है, वह सहिष्णु होता है। आचार्यश्री ने आचार्य भिक्षु और आचार्य तुलसी के धैर्य धारण करने की क्षमता का उदाहरण देते हुए कहा कि आदमी को जीवन में धैर्यवान बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को छोटी-छोटी बातों पर धैर्य नहीं खोना चाहिए। साधुओं में विशेष रूप से धैर्य होना चाहिए। कभी गुरु द्वारा कठोर भाषा या निर्णय से कष्ट मिल सकता है। वह तिरस्कृत तो होता है लेकिन उसे विनय भाव से स्वीकार कर ले तो उसका उत्थान हो सकता है। गुरु की असातना नहीं करनी चाहिए। आचार्यश्री ने संत को परिभाषित करते हुए कहा कि जो शांत हो वह संत होता है। यदि किसी साधु-संत को बात-बात में गुस्सा आए तो उसके साधुता में संभव है। आचार्यश्री ने शिलोंग यात्रा का वर्णन करते हुए कहा कि शिलोंग रहने वाले श्रावकों ने कितनी बार दर्शन-सेवा के लिए पहुंचे होंगे लेकिन इस बार हमने मन बनाया उनके यहां पहुंचने और गए भी। शिलोंग के मुख्यमंत्री, मुख्य न्यायाधीश सहित अन्य गणमान्य लोग भी आए। उन्हें अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के बारे में बताया, लोगों ने संकल्प भी यथासंभव स्वीकार किए। यहां असम राज्य के विधानसभा अध्यक्ष के घर गए। वहां मुख्यसचिवजी ने मद्यपान न करने का संकल्प लिया। गुवाहाटी की जनता में आध्यात्मिकता का विकास हो, सिग्नेचर एस्टेट के लोगों में धर्म की भावना प्रबल, आध्यात्मिक विकास हो, मंगलकामना। 
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखाजी ने उपस्थित लोगों को अपनी वाणी से अभिसिंचन प्रदान करते हुए कहा कि आचार्यश्री पुरुषार्थ के प्रतिरूप हैं। धारापुर में चातुर्मासिक प्रवास और एक सप्ताह शहर में प्रवास के बावजूद भी आचार्यप्रवर निरन्तर श्रम करते रहे। शिलोंग के प्रलम्ब विहार ने मुझे और कई साध्वियों को पीछे छोड़ दिया। यह उनकी कृपा है, जो सबकी सुविधाओं का ख्याल रखते हैं। गुरुदेव ने जिस तरह पहाड़ों की चढ़ाई कर शिलोंग पहुंचे। उसी प्रकार गुरुदेव का कर्तृत्व धरती से आकाश तक पहुंच गई है। आचार्यश्री के कर्तृत्व को शब्दों में बांधना आकाश को बांधने जैसा है। आचार्यश्री ने शिलोंग पधारकर शिलोंगवासियों की चिरकालिक इच्छा पूर्ण कर दी। जहां आचार्यश्री के चरण टिकते हैं, वहां नया इतिहास बन जाता है। 
कार्यक्रम के अंत में सिग्नेचर एस्टेट में रहनी वाली बहनों ने आचार्यश्री के स्वागत में गीत का संगान किया। साध्वीवृन्द ने भी गीत का संगान कर आचार्यश्री का अभ्यर्थना की। आचार्यश्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री सुपारसमल बैद और श्री विजय सिंह डागा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।



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