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मन को निर्मल बना मोक्ष प्राप्ति की ओर बढ़ने का प्रयास करे : आचार्यश्री महाश्रमण

मानवता का नवसंचार करने छयगांव कालेज से विहार कर आचार्यश्री पहुंचे बोको स्थित हाईस्कूल 

आचार्यश्री महाश्रमणजी

09 दिसम्बर 2016 बोको, कामरूप (असम) : इस दुनिया में अपना पाप और अपना पुण्य होता है। प्रत्येक का पाप-पुण्य होता है। अपने किए पाप और अपने किए गए पुण्यों का फल खुद भोगना पड़ता है। किसी के पाप या पुण्य का फल दूसरा कोई नहीं भोग सकता अथवा कोई सहयोगी नहीं बन सकता। इसलिए आदमी को सोचना चाहिए कि वह पाप कर रहा है या साधना-निर्जरा के माध्यम से अपने जीवन का कल्याण कर रहा है। आदमी को पाप कर्मों को छोड़ साधना कर मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। जीवन को कल्याण की दिशा में आगे ले जाने वाला उक्त ज्ञान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को बोको हाईस्कूल परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान किया। 
नई चेतना, नई प्रेरणा, मानवता का नवसंचार करने का दृढ़ संकल्प लेकर निकले मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी का चतुर्मास की समाप्ति के बाद जन-जन को जागृत करने करने के लिए गांव-गांव पहुंचने लगे हैं। मानवता की मशाल जलाए मौसम की अनुकूलता-प्रतिकूलता, रास्ते की समता-विषमता की परवाह किए बिना अपने लक्ष्य को पूर्ण करने मानव मात्र का आध्यात्मिक कल्याण करने के लिए आचार्यश्री निरंतर गतिशील हैं। 
शुक्रवार को छयगांव कालेज से सुबह लगभग साढ़े छह बजे आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ बोको के लिए निकले। तब तक कोहरे ने अपनी चादर समेटी भी नहीं थी। इस कारण मार्ग की स्पष्टता कम थी और हवा बदन में सिहरन पैदा कर रही थी, किन्तु समभाव रखने वाले आचार्यश्री प्रसन्न मुद्रा में बढ़ चले। हालांकि जैसे-जैसे आचार्यश्री के मंगल चरण बढ़ रहे थे वैसे-वैसे सूर्य अपनी रश्मियों की तीक्ष्णता को बढ़ा रहा था और कोहरा अपनी चादर को समेटता जा रहा था। लगभग सोलह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री बोको स्थित हाईस्कूल प्रांगण में पहुंचे। 
विद्यालय प्रांगण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पाप-पुण्य कर्मों के भेद को बताते हुए कहा कि पाप कर्म आदमी को जीवन को गर्त की ओर ले जाने वाले बन सकते हैं तो पुण्य कर्म व्यक्ति को पद, प्रतिष्ठा या उच्च स्थान पर ले जाने वाला बन सकता है। आदमी के जब शुभ कर्मों का उदय होता है तो उसे पद, प्रतिष्ठा वैभव आदि की प्राप्ति होती है। ऐसे शुभयोग में आदमी को समभाव बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए ताकि अहंकार के भाव से अपनी आत्मा को बचाया जा सके। संसाधनोें की प्राप्ति या यश-कीर्ति के कारण आदमी में अहंकर आ सकता है। इसलिए आदमी को समता भाव बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। पाप कार्यों के कारण चाहे परिस्थतियां प्रतिकूल बनें या पुण्य कर्मों के योग से अनुकूल बनें, आदमी को समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को पापों से बचाव के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। 
आचार्यश्री ने योग को मोक्ष प्राप्ति का साधन बताते हुए कहा कि आदमी को भोग नहीं योग में रहने का प्रयास करना चाहिए। योग अपने से अपने को जोड़ने का उपक्रम है। आदमी पापों से बचने के प्रति जागरूक रहे। उसे मन को निर्मल बना मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।



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