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जीवन में सद-गुणों को ग्रहण करने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमणजी

महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरणरज से पावन हुई धूपधरा की भूमि

आचार्यश्री महाश्रमणजी

          धूपधरा, कामरूप (असम) : रविवार को धूपधरा की भूमि दो-दो सूर्यों के प्रकाश से ज्योतित हो उठी। एक ओर दैनिक सेवरा लेकर सूर्य धूपधरा के बाहरी धरा को मिटा रहा था तो वहीं जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ज्ञान का प्रकाश फैला धूपधरावासियों के भीतरी अंधकार को मिटा रहे थे। ऐसी अनोखी और आध्यात्मिकता से भरी सुबह धूपधरावासियों को चेतना सम्पन्न बना रही थी। 
         रविवार की सुबह जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी सिंगरा से धूपधरा की प्रस्थित हुए तो पहले के कुछ दिनों की अपेक्षा घना कोहरा छाया हुआ था। सूर्य आसमान में आ तो चुका था लेकिन कोहरे के कारण वह भी अदृश्य बना हुआ था। लोगों को चलने वाली ठंडी हवा सर्दी के मौसम का अनुभव करा रही थी तो वहीं वृक्षों से टपकती ओस की बूंदे सर्दी में बरसात जैसी लग रही थी। इन मौसमी मिजाज के बावजूद अपने धुन धनी, अटल इरादों के साथ जन कल्याण को निकले ज्योतिचरण के कदम अपनी सेना के निकल पड़े। ऐसा लग रहा था मानों सूर्य कोहरे को मिटाने अपनी किरणों के साथ निकल पड़ा था तो अध्यात्म महासूर्य जन-जन के भीतरी अंधकार को मिटाने के लिए ज्ञान के आलोक से निकल पड़े थे। दोनों सूर्य जैसे-जैसे अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे अंधेरा मिटता जा रहा था और चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश फैल रहा था। लगभग 10 किलोमीटर का विहार कर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ धूपधरा के गर्ल्स हाईस्कूल प्रांगण में पधारे। जहां धूपधरावासियों ने अपनी धरा पर अपने आराध्य का भावभरा वंदन, अभिनन्दन और स्वागत किया। 
   आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं के मन के अंधेरे को दूर करने के लिए ज्ञान का प्रकाश बांटते हुए फ़रमाया कि आदमी गुणों से साधु और अगुणों से असाधु होता है। इसलिए आदमी को जीवन में सद्गुणों को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए और असद्गुणों का परित्याग करने का प्रयास करना चाहिए। 
          जीवन का उत्थान सद्गुणों के विकास से संभव हो सकता है। आचार्यश्री ने ‘सादा जीवन उच्च विचार, मानव जीवन का श्रृंगार’ को व्याख्यायित करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में सादगी और विचार उच्च हो तो मानव जीवन श्रृंगारित हो सकता है। आचार्यश्री ने फ़रमाया किसी के चेहरे से, शरीर से सज्जन और दुर्जन की पहचान करना मुश्किल हो सकता है। दुर्जन के पास विद्या होती है तो वह उसका प्रयोग किसी विवाद या समस्या को बढ़ाने में प्रयोग करता है और यदि सज्जन के पास विद्या है तो वह विवाद को सुलझाने में प्रयोग करता है। दुर्जन के पास ताकत हो, शक्ति हो तो वह किसा का बुरा करता है, किसी को हानी पहुंचाता है। सज्जन के पास ताकत हो तो वह दूसरों की भलाई और कल्याण में प्रयोग करता है। आचार्यश्री ने लोगों को प्रेरित करते हुए कहा आदमी को सद्गुण ग्रहण करने और अवगुणों को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री का अपनी धरती पर स्वागत करते हुए धूपधरा की बहनों ने गीत के माध्यम से आचार्यश्री की वन्दना की। 
    आचार्यश्री ने शाम लगभग चार बजे धूपधरा गर्ल्स हाईस्कूल से विहार करने का निर्णय लिया और लगभग डेढ़ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री अपने रात्रि प्रवास के लिए कोठाकुठी स्थित सेंट फ्रेंसिस स्कूल में पधारकर उसे भी अपने चरणरज से पावन कर दिया।


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