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गुरु आज्ञा बिना सब निरर्थक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरु की महिमा का पुज्यप्रवर ने किया बखान

आचार्यश्री महाश्रमणजी
          12 दिसम्बर 2016 दारनगिरी, ग्वालपाड़ा (असम), आदमी के जीवन में गुरु का पूजनीय और महत्वपूर्ण स्थान है। धर्म के क्षेत्र में गुरु मार्गदर्शक, ज्ञानप्रदाता और अनुशास्ता भी हो सकते हैं। गुरु ज्ञानदाता होता है। गुरु शब्द में गु अक्षर का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ निवारक होता है। अंधकार के निवारक गुरु होते हैं। अज्ञान से अंधे व्यक्तियों को अपने ज्ञान की अंजन सलाका से खोलने वाले गुरु होते हैं। अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने वाले गुरु पूजनीय होते हैं, वंदनीय होते हैं। आदमी को गुरु की अवज्ञा या अशातना नहीं करनी चाहिए। उक्त ज्ञान की बातें जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने असम के ग्वालपाड़ा में उपस्थित श्रद्धालुओं को बताईं। 
         अहिंसा यात्रा के तीन महान संकल्पों से जन जागृति करते हुए सोमवार को ग्वालपाड़ा जिले के दरंगगिरी गांव में पहुंचे। कोठाकुठी के सेंट फ्रांसिस स्कूल से सुबह विहार दरंगगिरी के लिए विहार किया। आज मार्ग के दोनों किनारे दूर-दूर फैले खेतों में पक चुकी धान की फसल असम की शस्य श्यामला धरा को धानी रंग में रंग रही थी। जगह-जगह किसान अपने चार महीनों के बाद तैयार कमाई को समेटने में लगे हुए थे। लगभग 16 किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर आचार्यश्री दारंगगिरी स्थित शंकरदेव शिशु विद्या निकेतन विद्यालय के प्रांगण में पहुंचे। 
          विद्यालय में परीक्षा होने के कारण आचार्यश्री ने मार्ग की दूरी ओर लगभग 250 मीटर की दूरी पर स्थित अमित एक्वा प्राईवेट लिमिटेड नामक पानी फैक्ट्री जो साध्वीप्रमुखाजी का प्रवास स्थल बना हुआ था, सुबह का प्रवचन कार्यक्रम वहीं समायोज्य करने का निर्णय लिया। फैक्ट्री के मालिक श्री पवन अग्रवाल सहित अन्य श्रद्धालुओं ने वहां आचार्यश्री का अभिनन्दन किया। आचार्यश्री ने फैक्ट्री प्रांगण में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि जीवन में ज्ञान का महत्व होता है तो ज्ञानप्रदाता गुरु का भी बहुत महत्व होता है। इसलिए आदमी को गुरु की आज्ञा का विशेष ध्यान देना चाहिए। गुरु की आज्ञा को किसी प्रश्न, शंका और प्रत्युत्तर के बिना पालन करना चाहिए। आचार्य सोमप्रभसूरी ने सिंदूरप्रकर में गुरु का गुणगान करते हुए कहा है कि आदमी ध्यान करता है तो कोई खास बात नहीं, पदार्थों का परित्याग करता है वह भी कोई खास बात नहीं। तपस्या करना भी कोई खास बात नहीं, आगम-स्वाध्याय करना भी कोई खास बात नहीं, जब तक गुरु की आज्ञा न हो। गुरु की आज्ञा के बिना त्याग, तपस्या, ध्यान, जप, स्वाध्याय सब निरर्थक है। आदमी को गुरु के प्रति विनीत रहने का प्रयास करना चाहिए। आचार सम्पन्न गुरु की अवज्ञा करना अग्नि की रतह भस्म करने वाली बन सकती है। इसलिए आदमी को सदेव गुरु की आज्ञा और कृपादृष्टि में रहते हुए अपने जीवन का कल्याण करने का प्रयास करना चाहिए। 
कार्यक्रम के अंत श्री गौरव लूणावत ने गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया। फैक्ट्री के मालिक श्री पवन अग्रवाल ने आचार्यश्री के पदार्पण से इतने अभिभूत थे कि जब आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने को उपस्थित हुए तो मैं आपके आगमन से अत्यन्त हर्षित हूं, इससे आगे उनके मुख से शब्द ही नहीं फूट रहे थे।


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