लगभग 14 किमी का विहार कर कृष्णाई पहुँची धवल सेना
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आचार्यश्री महाश्रमणजी |
14 दिसम्बर 2016 कृष्णाई, ग्वालपाड़ा (असम) : जन-जन का कल्याण करने को अहिंसा यात्रा लेकर निकले अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी के ज्योतिचरण बुधवार को ग्वालपाड़ा के कृष्णाई गांव में पड़ा। महातपस्वी, शांतिदूत के चरणरज पाकर कृष्णाई की धरती पावन हो गई। कृष्णाई नदी के तट पर बसा इस गांव में आचार्यश्री ने अपने श्रीमुख से ज्ञान की नदी बहाई और लोगों के हृदय को अभिसिंचन प्रदान कर लोगों को बेहतर जीवन जीने के लिए सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे कल्याणकारी सूत्र भी प्रदान किए और साथ ही बोलने की कला भी सिखाई। अपनी धरती पर अपने आराध्य को पाकर कृष्णाई निवासी श्रद्धालु आह्लादित थे। उन्होंने अपने आराध्य के स्वागत अपनी भावनाओं के श्रद्धासुमन श्रीचरणों में अर्पित किया।
बुधवार को आचार्यश्री दुधनोई से प्रातः की मंगलबेला में प्रस्थान किया। आज कोहरे का प्रभाव अन्य दिनों की अपेक्षा कम था। दूर-दूर तक फैले खेतों में खड़ी धान की फसल सूर्य की रोशनी के मिलकर स्वर्ण आभा फैला रही थी तो वहीं पृथ्वी का महासूर्य के आभामंडल से निकले वाला प्रकाश लोगों के मनोभाव को प्रकाशित कर विचारधारा को स्वर्णमय बना रहा था। लगभग चैदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ कृष्णाई पहुंचे। जहां कृष्णाईवासियों ने आचार्यश्री का भाव भरा स्वागत किया। आचार्यश्री कृष्णाई निवासी श्री जीवनमल धाड़ीवाल के घर में पधारे।
उनके आवास स्थल के बाहर में बने प्रवचन स्थल में उपस्थित श्रद्धालुओं की श्रवण तृष्णा को अपनी अमृतमयी वाणी की बरसात से तृप्त कराते हुए आचार्यश्री ने कहा कि जीवन में भाषा का प्रयोग होता है। दुनिया में मौन करने वाले लोग भी होते हैं। वे कुछ समय, कुछ घंटे या कुछ दिनों के लिए मौन कर सकते हैं लेकिन जीवन भर के लिए मौन होना मुश्किल हो सकता है। कई मनुष्य ऐसे भी होते हैं जिनके पास बोलने की क्षमता नहीं होती। बोलने की क्षमता प्राप्त लोगों को यह ध्यान देना चाहिए कि सम्यक वाणी का प्रयोग हो।
आचार्यश्री ने वाणी को रत्न बताते हुए कहा कि आदमी को सोच-विचार कर बोलना चाहिए। वाणी रूपी रत्न का मुंह दरवाजा उसे बंद रखने का प्रयास करना चाहिए। मौके पर सोच कर बोलने का प्रयास करना चाहिए। कहां, बोलना, कितना बोलना, कैसे बोलना आदि प्रश्नों का विचार कर ही वाणी रूपी रत्न का दरवाजा खोलना चाहिए। आचार्यश्री ने वाणी के दो दोष बताते हुए कहा कि किसी बात को लंबा करना और अर्थहीन बोलना वाणी के दोष होते हैं। बहुत नहीं बोलना चाहिए। आदमी अधिक बोलने में दूसरों का अपना भी समय बरबाद करता है। इसलिए आदमी को कम बोलने और सारगर्भित बात बोलने का प्रयास करना चाहिए। मौन या कम बोलने वाला ऊपर उठने वाला बन सकता है। आचार्यश्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे नुपूर बोलती है तो उसे पैरों में स्थान मिलता है और हार नहीं बोलता, इसलिए उसे गले में स्थान प्राप्त होता है। इसी प्रकार ज्यादा बोलने वाला नीचे और कम बोलने वाला ऊपर उठ सकता है। आदमी को मीठा बोलने का प्रयास करना चाहिए। मीठी बोल सुख पैदा करने वाली होती है। मीठी बात सामने वाले के लिए वशिकरण बन सकती है। जैसे कौआ किसी से कुछ लेता नहीं लेकिन अपनी कर्कस वाणी के कारण सब उसे दूर रखने का प्रयास करते हैं और कोयल किसी को कुछ नहीं देती लेकिन मीठी बोली के कारण सब उसे पास रख सकते हैं। आदमी को सत्य बोलने का प्रयास करना चाहिए। कई बार सत्य बोलना कठिन हो जाता है तो आदमी मौन हो जाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी जो भी बोले उसे पहले तौले, फिर बोले तो वाणी की उत्कृष्टता कायम रह सकती है और यथार्थवादिता भी बन रह सकती है। इस प्रकार आदमी को अपनी वाणी को सम्यक बनाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री मंगलवाणी का रसपान कर तृप्त हुए कृष्णाई में रहने वाले श्रद्धालुओं के मन के भाव भी आचार्यश्री के समक्ष प्रकट होने को उमड़-घुमड़ रहे थे। तेरापंथी सभा कृष्णाई के अध्यक्ष श्री अनील कुमार डोसी, तेरापंथ महिला मंडल की मंत्री श्रीमती बसंतीदेवी डोसी, श्री जीवनमल धाड़ीवाल ने अपने भावनाओं के सुमन आचार्यश्री के श्रीचरणों में समर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। वहीं कृष्णाई के युवक और महिलाओं और श्रीमती कुसुमदेवी धाड़ीवाल ने गीत के माध्यम से अपनी भावांजलि आचार्यश्री के चरणों में समर्पित किया।
कृष्णाईवासियों ने स्वीकार की गुरुधारणा (सम्यकत्व दीक्षा)
आचार्यश्री के आगमन से उल्लसित कृष्णाईवासियों को जब आचार्यश्री ने अपने श्रीमुख से गुरुधारणा स्वीकार करने का आह्वान किया तो श्रद्धालुओं को ऐसे लगा जैसी उनकी मुंहमांगी मुराद उनके अराध्य पूर्ण कर रहे हैं। पहले उनकी धरा पर पदार्पण श्री अमृतमय प्रवचन और भी सम्यकत्व दीक्षा इस कृपा से अभिभूत श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री के समक्ष उपस्थित होकर गुरुधारणा स्वीकार की और आजीवन देव, गुरु और धर्म के प्रति निष्ठावान बने रहने का संकल्प स्वीकार किया।
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Om arham
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