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साधु रत्नों की बड़ी माला, श्रावक छोटी माला : आचार्यश्री महाश्रमण

उपस्थित ग्रामीणों एवं श्रद्धालुओ को आचार्यश्री ने प्रदान किये आध्यात्मिक ज्ञान

आचार्यश्री महाश्रमणजी

          15 दिसम्बर 2016 हेलापाकरी, ग्वालपाड़ा (असम) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ हेलापाकरी गांव स्थित हाईस्कूल पधारे। वहां उपस्थित ग्रामीणों और श्रद्धालुओं को आचार्यश्री आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर उन्हें अपने जीवन का कल्याण करने की मंगल प्रेरणा प्रदान की। 
      जन-जन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की चेतना जागृत करने को निकले मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमण जी गुरुवार की प्रातः लगभग सवा छह बजे अपनी धवल सेना के साथ हेलापाकरी के लिए विहार किया। अब तक मुख्य मार्ग से विहरण करती अहिंसा यात्रा आज ग्रामीणांचलों में जानी वाली एकल मार्ग पर निकल पड़ी। कहीं घना कोहरा तो कहीं हल्का कोहरा छाया हुआ था। धान की फसलों को लगभग किसान अपने घरों तक सुरक्षित पहुंचा चुके थे। अब खेतों में उनके ठूंठ ही नजर आ रहे थे। कुछ दूरी की यात्रा के बाद ही मार्ग के एक किनारे चाय बागानों ने असम में होने का अहसास कराया। लगभग चैदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री हेलापाकरी स्थित हाईस्कूल में पधारे। 
      विद्यालय प्रांगण में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जैन शासन में चतुर्विध धर्मसंघ है जिसमें साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविका होते हैं। ध्यान यह देना चाहिए कि श्रावकों की भी अशातना नहीं होनी चाहिए। हालांकि साधु की तुलना में श्रावक छोटा होता है। श्रावक जो गृहस्थावस्था में होता है वह छह प्रकार के कायों की हिंसा करने वाला हो सकता है लेकिन साधु अहिंसा महाव्रत का पालक होता है। जैसे आचार्य के बराबर साधु नहीं आते, उसी प्रकार श्रावक को भी साधु के बराबर नहीं आना चाहिए। आचार्यश्री ने साधु को बड़ी माला और श्रावक को छोटी माला बताते हुए कहा कि दोनों रत्नों की माला हैं, लेकिन साधु रत्नों की माला और श्रावक छोटी माला है। 
      आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को शनिवार को सामायिक करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए सामायिक की महत्ता को समझाया और राजा श्रेणिक और नियमित सामायिक करने वाले श्रावक पूनिया की कहानी भी सुनाई। आचार्यश्री ने कहा एक सामायिक की कीमत नहीं आंकी जा सकती। इसलिए श्रावक प्रतिदिन सामायिक करे तो और भी अच्छा, लेकिन अपने दैनिक कार्यों के चलते समय न मिलने पर शनिवार को सायं सात से आठ बजे के बीच सामायिक करने का प्रयास करना चाहिए। श्रावक को त्याग, संयम का अभ्यास और सामायिक करने का प्रयास करना चाहिए।


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