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पाप कर्म से बचने का प्रयास करे : आचार्य श्री महाश्रमण

🔸 पूर्व विधायक श्री भूपेन रॉय ने अपने आवास में पुज्यप्रवर का किया स्वागत 🔸

आचार्यश्री महाश्रमण

            20 दिसम्बर 2016 तुलुगिंया, बंगाईगांव (असम) : अहिंसा यात्रा अब धीरे-धीरे बंगाल की सीमा ओर बढ़ने लगी है। मंगलवार को अहिंसा यात्रा के प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण अपनी धवल सेना के साथ चलंतपारा से लगभग चौदह किलोमीटर का विहार का नाथ सालमारा के तुलुगिंया गांव पहुंचे। जहां उत्तरी अभयापुरी से असम गण परिषद (एजीपी) से चार बार के विधायक रह चुके श्री भूपेन राॅय ने अपने आवास में आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत-अभिनन्दन किया। आचार्यश्री का आज का प्रवास पूर्व विधायक के आवास में ही हुआ। 
सोमवार की देर रात हुई बरसात के कारण सूर्य का दर्शन तो नहीं हुआ लेकिन यथासमय अखंड परिव्राजक आचार्यश्री ने अपने अगले पड़ाव की ओर अपनी धवल सेना के साथ प्रस्थान किया। असम की शस्य-श्यामला धरा आज धानी रंग में रंगी नजर आ रही थी। दूर-दूर तक खेतों में लगी सरसों की फसल के पीले फूल धरती के आंचल को धानी बनाए हुए थे। उनसे उठने वाली मोहक सुगंध लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। यह नयनाभिराम दृश्य जो भी देखता, देखता रह जाता। लगभग कुल चैदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री उत्तरी सालमारा के तुलुगिंया गांव स्थित एजीपी के पूर्व विधायक श्री भूपेन राॅय के आवास में पधारे। 
         आवास परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं और ग्रामीणों को कर्मवाद का पाठ पढ़ाते हुए आचार्यश्री ने कहा कि भारतीय विचारधारा में कर्मवाद का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। आदमी जो भी सुख-दुःख पाता है, वह अपने पूर्वकृत कर्मों के अनुसार प्राप्त करता है। पुण्य कर्म के कारण जीवन मंे सुख तो पाप कर्मों के कारण आदमी के जीवन में दुःख की प्राप्ति होती है। पूर्वकृत पुण्य आदमी की रक्षा-सुरक्षा करता है। इसलिए आदमी को पाप कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। 
आचार्यश्री ने सुख-दुःख का हेतु पाप और पुण्य को बताते हुए कहा कि सुख का हेतु पुण्य और दुःख का कारण पाप होता है। आदमी अपने पूर्वकृत पाप-पुण्य कर्मों के आधार पर जीवन में सुख-दुःख प्राप्त करता है। आचार्यश्री ने इस संसार को सघन जंगल बताते हुए कहा कि यह संसार जंगल कर्म की लताओं से घनघोर बना हुआ है। जहां पांच आश्रव रूपी बादलों से बरसात हो रही है और मोह का अंधकार भी छाया हुआ है। ऐसे घनघोर संसार जंगल में जीवन विभिन्न योनियों में भ्रमण कर रहा है। इन प्राणियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए और संसार रूपी घनघोर जंगल से बचाने के लिए तीर्थंकर भगवान ने प्रवचन किया। उनकी वाणी जीव की रक्षा करने वाली है। आदमी को अपने आपको पाप कर्मों से बचाने का प्रयास करना चाहिए। 
कार्यक्रम के अंत में पूर्व विधायक श्री भूपेन राॅय ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि मेरे और मेरे परिवार का यह सौभाग्य है जो आप जैसे महासंत का मेरे आवास में पदार्पण हुआ। आप भगवान की वाणी को लेकर सभी जीवों तक पहुंचाने का जो कार्य कर रहे हैं, इससे सबका कल्याण हो सकता है। आप हमारे गरीबखाने में आए, यह मेरा परम सौभाग्य है। वहीं श्री सुशील लाल मास्टर ने असमी भाषा में आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया। आचार्यश्री ने पूर्व विधायक और मास्टरजी को आजीवन मद्यपान न करने का संकल्प कराया और उन्हें शुभाशीष प्रदान किया।


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