-मुख्यामुनी श्री एवं साध्वीवार्य श्री के उद्बोधन से श्रद्धालु हुए लाभान्वित-
![]() |
आचार्यश्री महाश्रमणजी |
25 दिसम्बर 2016 बीलासीपाड़ा, धुबड़ी (असम) (JTN), तेरापंथ धर्मसंघ के लगभग 256 वर्षों के इतिहास में पहली बार भारत की पूर्वोत्तर
धरा को पावन करने वाले ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी मानों श्रद्धालुओं के वर्षों की प्यास को बुझाने के लिए अपनी ज्ञान, प्रेम और वात्सल्य
की अविरल धारा प्रवाहित कर रहे हैं।
आचार्य श्री ने मंगल प्रेरणा पाथेय में शांति का मार्ग बताते हुए कहा कि दसवेआलियं
के नवमें अध्ययन में समाधि के बारे में बताया गया है। चित्त की विशिष्ट शांति की स्थिति को समाधि कहा गया है। संसार में प्रत्येक आदमी को शांति की अपेक्षा होती है। आदमी अपने जीवन में शांति की कामना करता है। चित्त की शांति के लिए चित्त में प्रसन्नता होनी चाहिए। उक्त ग्रंथ में चार प्रकार की समाधियां बताई गई हैं विनय समाधि, श्रुत समाधि,
तपः समाधि और आचार समाधि। आचार्यश्री ने एक-एक समाधि की विस्तृत व्याख्या
करते हुए बताया कि अहंकार से दूर रहकर यथार्थ और ज्ञान के प्रति विनय का भाव रखने वाला आदमी समाधि को प्राप्त कर सकता है। वीतराग और यथार्थ के प्रति विनय का भाव, धर्म-संप्रदाय
के प्रति विनय और सम्मान का भाव और पूज्यों के प्रति सम्मान का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। विद्वानों में भी विनय का भाव होना चाहिए। विद्या विनय से शोभित होती है। विनयवान और अभिवादनशील आदमी का आयुष्य, विद्या,
यश और बल की वृद्धि होती है। श्रुत समाधि-अर्थात् ज्ञान की प्राप्ति।
विभिन्न ग्रंथों के स्वाध्याय करने से आदमी के चित्त को प्रसन्नता की प्राप्ति हो सकती है। आदमी स्वाध्याय करे, यथासंभव शनिवार को सायं सात से आठ बजे के बीच सामायिक करने का प्रयास करना चाहिए। तपः समाधि-अर्थात् तपस्या के द्वारा आदमी समाधि और शांति को प्राप्त कर सकता है। आचार्यश्री
ने संवत्सरी के दिन उपवास करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि यदि स्वास्थ्य की अनुकूलता हो तो आदमी को अवश्य उपवास करना चाहिए। उनोदरी, जमीकंद का त्याग,
रात्रि भोजन का त्याग भी तपस्या है। तपस्या से शांति की प्राप्ति हो सकती है। आचार समाधि-आदर्श आचार का पालन से भी समाधि की प्राप्ति
हो सकती है। इन चारों समाधियों का जीवन में विकास हो तो चित्त निर्मलता और शांति को प्राप्त कर सकता है।
शांति का मार्ग दिखाने के उपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बिलासीपाड़ा के श्रद्धालुओं को अपने श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा)
प्रदान की। इस दौरान आचार्यश्री ने समस्त श्रद्धालुओं को देव, गुरु और धर्म के प्रति संपूर्ण श्रद्धा के समर्पण का संकल्प करया तो वहीं मासांहार,
हिंसा, मद्यपान आदि जैसी बुराइयों
से दूर रहने का संकल्प स्वीकार कराया। गुरुमुख से गुरुधारणा स्वीकार कर श्रद्धालुओं ने सविधि वंदन कर गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य किया।
इससे पूर्व आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने श्रद्धालुओं को माया को जीत आत्मा को कष्ट से बचाने की प्रेरणा प्रदान की और ‘नर सरल हृदय बण जाओ रे’ गीत का संगान किया।
मुख्यमुनिश्री ने चार प्रकार के श्रमणोपासकों के बारे में बताया और सभी को आदर्श श्रमणोपासक बनने की प्रेरणा करते हुए कहा कि बिलासीपाड़ावासियों का यह परम सौभाग्य है कि जो यहां आचार्यश्री जैसे महासंत का आगमन हुआ है। आचार्यश्री की अहिंसा यात्रा अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली है। इसके माध्यम से आचार्यश्री जन-जन में मानवीय मूल्यों की चेतना को जागृत कर उनके जीवन को प्रकाशित
कर रहे हैं। मुख्यमुनिश्री ने अपने सुमधुर स्वर में ‘सतयुग की पहचान हो, सचमुच में भगवान हो’ का संगान कर श्रद्धालुओं
को भाव-विभोर कर दिया।
आचार्यश्री के समक्ष दूसरे दिन भी श्रद्धालुओं ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर शुभाशीष प्राप्त किया। इस क्रम में सर्वप्रथम बिलासीपाड़ा तेरापंथी सभा के मंत्री श्री संपतलाल सिंघी, पूर्व अध्यक्ष श्री ताराचंद सिंघी,
श्री हनुमान महनोत ने भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। वहीं ब्राह्मण समाज की ओर से श्री पुरुषोत्तम पारिक ने आचार्यश्री का स्वागत करते कहा कि स्वामी जी आपके आगमन से यह बिलासीपाड़ा नगर मथुरा-वृन्दावन
की भांति हो गया है। आपके त्याग और तपस्या की चर्चा सुनते आ रहे थे, आज साक्षात दर्शन कर अत्यन्त हर्ष की अनुभूति हो रही है। जैन धर्म के त्याग और तपस्या के वर्णन को मुश्किल बताते हुए कहा कि जैन धर्म की त्याग और तपस्या जितनी कठिन तपस्या अन्य कहीं नहीं है। आपकी धवल सेना लोगों को अहिंसा का पाठ ऐसे पढ़ा रही है जैसे सेना के जवान अपने कार्य को अनुशासन के साथ पूर्ण करते हैं। उन्होंने
कहा जैन धर्म के साधु के संपर्क में आने से व्यक्ति के जीवन में आए बदलाव का उदाहरण देते हुए कहा कि आपश्री के दर्शन और आपके प्रवचन को सुनने वाले लोगों के जीवन में भी अवश्य बदलाव आएगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
इसके उपरान्त ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों क्रिसमस डे होने के कारण सांता क्लाज के साथ आचार्यश्री के समक्ष उपस्थित होकर अपनी भावनाओं की भावपूर्ण प्रस्तुति दी तो वहीं समता संघ कन्या मंडल की कन्याओं ने भी भावपूर्ण प्रस्तुति देकर आचार्यश्री से शुभाशीष प्राप्त किया। श्री धनपत सिंघी और समणी जगतप्रज्ञाजी के परिजनों ने भी गीत की प्रस्तुति दी। भक्त वत्सल आचार्यश्री
ने समणी जगतप्रज्ञाजी को कुछ दिन बिलासीपाड़ा में रहने का तत्काल निर्देश प्रदान किया। मनभावन आशीष मिलते ही श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य देव के जयकारों से पूरे वातावरण को गुंजायमान कर दिया।
3 Comments
Om arham
ReplyDeleteOm arham
ReplyDeleteOm Arham
ReplyDeleteLeave your valuable comments about this here :