-पानबाडी से लगभग 12 किमी का विहार कर पुज्यप्रवर पहुंचे गौरीपुर-
-हाजरी का रहा क्रम, साधु साध्वियों को दी विशेष प्रेरणा-
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आचार्यश्री महाश्रमणजी |
28 दिसम्बर 2016. गौरीपुर (असम) जैन श्वेताम्बर
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के
प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता महातपस्वी आचार्यश्री
महाश्रमणजी ने बुधवार की सुबह पानबाड़ी स्थित बीएसएफ के 71वें
बटालियन के कैंप से गौरीपुर के लिए विहार किया। लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर
आचार्यश्री गौरीपुर पहुंचे। जहां गौरीपुर के श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का स्वागत
अभिनन्दन किया। आचार्यश्री तेरापंथी सभा गौरीपुर के अध्यक्ष श्री विजय सिंह
चोरड़िया के यहां आवास में पधारे। यहीं आचार्यश्री का प्रवास हुआ। इसके उपरान्त
आचार्यश्री प्रवास स्थल से कुछ दूरी पर स्थित पीसी इन्स्टीट्यूशन हायर सेकेण्ड्री
स्कूल के प्रांगण में बने अहिंसा समवसरण पंडाल में पधारे।
जैन
श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान
महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता महातपस्वी
आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गौरीपुर स्थित पीसी इन्स्टीट्यूशन हायर सेकेण्ड्री स्कूल
के प्रांगण में बने अहिंसा समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का
रसपान कराते हुए कहा कि मनुष्य के शरीर में पांच इन्द्रियां हैं-कान, आंख, नाक, जिह्वा और स्पर्श।
ये पांचों इन्द्रियां सभी को प्राप्त नहीं होती। संसार में अनंत-अनंत जीव एक
इन्द्रीय वाले, दो इन्द्रीय वाले, तीन
इन्द्रीय या चार इन्द्रीय वाले होते हैं। मनुष्य को पांचों इन्द्रियां प्राप्त
हैं। इनके माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है और भोग भी किया जा सकता है।
कान और आंख कामी और शेष तीन नाक, जिह्वा और स्पर्श को भोगी
इन्द्रियों के श्रेणी में रखा गया है। कान और आंख के द्वारा साक्षात भोग नहीं हो
सकता बाकी शेष इन्द्रियों द्वारा साक्षात भोग किया जा सकता है। साधु को इन्द्रियों
का विशेष संयम करना चाहिए। वहीं गृहस्थ आदमी को इन्द्रियों का अति असंयम नहीं करना
चाहिए। क्योंकि कहा गया है-‘अति सर्वत्र वर्जयेत।’ किसी भी चीज की अति नहीं होनी
चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि इन्द्रियों का
संयम अध्यात्म की साधना का सूत्र है। इसके बिना अध्यात्म की साधना का उर्ध्वारोहण
मुश्किल हो सकता है। आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते
हुए कहा कि साधु-साध्वियों को इन्द्रियों का विशेष संयम करने का प्रयास करना
चाहिए। हाथों का संयम हो, पैरों का संयम हो, वाणी का संयम हो तो
साधना अच्छी हो सकती है। वाणी में यथोचित विनय का प्रयोग करने का प्रयास करना
चाहिए। वाणी में आक्रोश लाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। वाचाल बनने से बचने का
प्रयास करना चाहिए। वाचालता आदमी को छोटा और नीचे ले जाने वाली तो मौन आदमी को ऊंचा उठाने वाले होता है। बोलने और न बोलने का
विवेक होना चाहिए। बोलने और न बोलने का विवेक होना बहुत बड़ी बात होती है। वाणी
मधुरता और यथार्थता से पूर्ण होनी चाहिए। भोजन का संयम करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने बालमुनियों द्वारा पूर्व में की गई तपस्या को सराहते हुए कहा कि इस
अवस्था में तपस्या आवश्यक है तो साथ में उचित मात्रा और संतुलित सेवन भी करने का
प्रयास करना चाहिए। इन्द्रियों का विषयों से निवर्तन और अध्यात्म में रमे रहने
वाले को साधु कहा जाता है। इसलिए साधु-साध्वियों को इन्द्रिय संयम और अधिक पुष्ट
बनाने का प्रयास करना चाहिए। वहीं गृहस्थ भी संयमयम जीवन बनाने का प्रयास करे तो
अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है।
चतुर्दशी
तिथि होने के कारण आचार्यश्री ने हाजरीपत्र का वाचन किया। आचार्यश्री ने
साधु-साध्वियों को भावभिनी वंदना भी करवाई। साध्वी मुदितयशाजी, साध्वी शुभ्रयशाजी और साध्वी कार्तिकयशाजी से लेखपत्र का उच्चारण करवाया।
इसके उपरान्त समस्त साधु-साध्वियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपने संकल्पों को
दोहराया।
अपनी धरा पर अपने आराध्य देव का सर्वप्रथम स्वागम
गौरीपुर की तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याओं ने स्वागत गीत के माध्यम से किया। इसके
उपरान्त स्कूल की प्रिंसिपल श्रीमती रेबा रॉय ने अपनी भाषा में आचार्यश्री की
अभ्यर्थना की और आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया। तेरापंथ कन्या मंडल ने गीत
का संगान किया। तेरापंथी सभा गौरीपुर के अध्यक्ष श्री विजय सिंह चोरड़िया, तेरापंथ
महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती रुबी चोरड़िया, श्री प्रकाश
चोरड़िया और श्रीमती सरलादेवी नाहर ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति देकर आचार्यश्री
से शुभाशीष प्राप्त किया। वहीं अग्रवाल समाज और जैन समाज के लोगों ने आचार्यश्री
के दर्शन कर शुभ आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यकम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार
जी ने किया।
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Om Arham
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