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जीवन बने शांति व शक्ति संपन्न : आचार्यश्री महाश्रमण


आचार्यश्री महाश्रमणजी

          30 दिसम्बर 2016 धुबड़ी (असम) : आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दूसरे दिन शुक्रवार को शंकरदेव शिशु उद्यान (चिल्ड्रेन पार्क) में बने मंगल समवसरण पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी मंगलवाणी से अभिस्नात करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में शांत का बहुत महत्व है। जीवन में शांति हो तो आदमी तरक्की कर सकता है, किन्तु अशांत और भयातुर आदमी को शांति प्राप्त नहीं हो सकती। दुनिया में पैसे का भी  महत्व है, किन्तु पैसे से शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती। जिसके मन में शांति है वह सीमित पैसे में जीवनयापन कर सकता है। आचार्यश्री शांति का विशेष महत्व बताते हुए कहा कि जितने भी बुद्ध, तीर्थंकर और अर्हत हुए हैं, सभी का आधार शांति ही रहा है और जो भविष्य में होंगे वे उनका आधार भी शांति ही होगा। जैसे प्राणियों लिए पृथ्वी आधार है, वैसे ही तीर्थंकर, बुद्ध और अर्हतों के लिए शांति ही आधार है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में शांति बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। 
          आचार्यश्री ने शांतमना व्यक्ति को शास्त्र का वेत्ता बताते हुए कहा कि जिसका मन शांत होता है, उसे शास्त्रों का वेत्ता कहा जाता है। क्योंकि शास्त्रों निर्माण ही शांति की प्राप्ति के लिए हुआ है तो इस प्रकार शांत चित्त वाले आदमी को शास्त्रों का वेत्ता कहा जा सकता है। जीवन में शांति की प्राप्ति के लिए संतोष का मार्ग बताते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि जिस आदमी के जीवन में संतोष का प्राधान्य हो जाए, उसे शांति की प्राप्ति हो सकती है। शांति के साथ आदमी को शक्ति का विकास भी करने का प्रयास करना चाहिए। शांति की प्राप्ति के लिए कभी कुछ झेलना हुआ, कुछ सहना हुआ तो उसके लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। मनुष्य के जीवन में हिम्मत हो तभी त्याग और तपस्या भी किया जा सकता है। इसलिए आदमी को जीवन में शक्ति का भी विकास करने का प्रयास करना चाहिए। तनशक्ति, मनशक्ति, वचनशक्ति और जनशक्ति होती है। इन सभी शक्तियों से ऊपर आत्मशक्ति होती है। आदमी को अपनी आत्मा के कल्याण के लिए शक्ति और शांति के विकास का आयास-प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने धुबड़ी आगमन पर विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि धुबड़ी में जैन समाज के अलावा अन्य समाज और संप्रदाय के लोग भी संपर्क में आए हैं। ज्ञान जहां से प्राप्त हो प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। अन्य समाज के लोग भी साधु-साध्वियों से प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में शक्ति और शांति के विकास का प्रयास कर सकते हैं। 
          आचार्यश्री के मंगलप्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने जीवन का सम्यक उपयोग करने की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम के अंत में दूसरे भी आचार्यश्री के समक्ष भावना को अभिव्यक्त करने वालों का तांता लगा रहा। तेरापंथ युवक परिषद धुबड़ी के अध्यक्ष श्री चैनरूप बुच्चा, श्रीमती अंजू बोथरा, श्रीमती मधु बोथरा, श्रीमती नीलम बुच्चा ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से आशीष प्राप्त किया। वहीं धुबड़ी ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने ‘आचार्यश्री की सन्निधि में कैसे मनाएं नववर्ष’ थीम पर आधारित नाटक की प्रस्तुति दी। विगत पांच दिनों से आचार्यश्री की सेवा को उपस्थित बैंगलोर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भी आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं को कौव्वाली के रूप में प्रस्तुति दी। तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बीसी भलावत, महामंत्री श्री विमल कटारिया सहित तेरापंथ युवक परिषद धुबड़ी के पदाधिकारियों और सदस्यों ने अपने द्वारा बनाई एक निर्देशिका को आचार्यश्री के श्रीचरणों में समर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री विनय भट्टाचार्य ने भी अपनी कृति आचार्यश्री के चरणों में समर्पित कर मंगल आशीष प्राप्त किया। साध्वी कौशलप्रभाजी के संसारपक्षीय परिवार की महिलाओं ने गीत का संगान कर आचार्यश्री की अभ्यर्थना की। कार्यकम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।



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